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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[चतुर्दशाध्ययनम्
सारांश कि संसार में रहने का आनन्द पुत्र आदि परिवार के साथ ही है। परिवार से रहित होने पर संसार में निवास करने का न तो कोई सुख ही है और न यश ही है।
___ अपने पति के इन वाक्यों को सुनकर यशा ने जो कुछ कहा, अब उसका वर्णन करते हैं
सुसंभिया कामगुणा इमे ते,
संपिण्डिआ अग्गरसप्पभूया। भुंजामु ता कामगुणे पगामं,
पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥३१॥ सुसंभृताः कामगुणा इमे ते, . सम्पिण्डिता अय्यरसप्रभूताः। भुञ्जीवहि तान् कामगुणान् प्रकामं,
पश्चाद् गमिष्यावः प्रधानमार्गम् ॥३१॥ पदार्थान्वयः-सुसंभिया-अति संस्कृत कामगुणा-काम गुण इमे-ये प्रत्यक्ष ते-तुम्हारे हैं संपिण्डिया-भली प्रकार से मिले हुए अग्गरस-प्रधान रस वाले पभूया-प्रभूत हैं ता-इसलिए कामगुणे-कामगुणों को मुंजामु-भोगें जो पगामप्रकाम हैं—पर्याप्त हैं पच्छा-पीछे-वृद्धावस्था में पहाणमग्गं-प्रधानमार्ग-साधुधर्म को गमिस्सामु-ग्रहण करेंगे।
___ मूलार्थ-तुम्हारे ये कामभोग अच्छे संस्कार युक्त, इकट्ठे मिले हुए, प्रधान रस वाले और पर्याप्त हैं । इसलिए हम लोग इन कामभोगों को भोगें। पश्चात् दीक्षा रूप प्रधान मार्ग का अनुसरण करेंगे।
टीका-यशा अपने पति से कहती है कि आपके घर में अनेक प्रकार के मनोरंजक कामभोग विद्यमान हैं। वे भी भली प्रकार से पर्याप्त रूप में उपस्थित हैं। अतः हम लोग प्रथम इनको भोगें और पीछे से-जब कि युवावस्था की समाप्ति