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त्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[ १०६५ निव्वाणंति अबाहंति, सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिंवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो ॥८३॥ निर्वाणमित्यबाधमिति , सिद्धिोकाग्रमेव च।। क्षेमं शिवमनाबाधं, यच्चरन्ति महर्षयः ॥८३॥
. पदार्थान्वयः-निव्वाणं-निर्वाण ति-इस प्रकार-पूर्व परामर्श में अबाहंबाधारहित ति-प्राग्वत् सिद्धी-मोक्ष लोगग्गम्-लोकाप्र एव-पादपूर्ति में है यसमुच्चयार्थक है खेम-क्षेम सिव-शिव अणाबाह-बाधारहित जं-जिस स्थान को महेसिणो-महर्षि लोग चरंति-आचरण करते हैं वा प्राप्त होते हैं। ... मूलार्थ हे मुने ! जिस स्थान को महर्षि लोग प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण, अत्याबाध, सिद्धि, लोकाग्र, क्षेम, शिव और अनाबाध इन नामों से विख्यात है । तात्पर्य यह है कि जिस स्थान का मैंने ऊपर उल्लेख किया है, उसके ये नाम हैं।
टीका-केशीकुमार के प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम स्वामी कहते है कि वह स्थान निर्वाण के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें सर्व प्रकार के कषायों से निवृत्त होकर परम शान्त अवस्था को प्राप्त होने से इसको निर्वाण कहते हैं तथा इसमें सर्व प्रकार की शारीरिक और मानसिक बाधाओं का अभाव होने से इसका अव्याबाध नाम भी है । एवं सर्वकार्यों की इसमें सिद्धि हो जाने से इसका सिद्धि नाम भी है। लोक के अग्र-अन्त भाग में होने से इसको लोकाग्र के नाम से भी पुकारते हैं। इसमें पहुंचने से किसी प्रकार का भी कष्ट न होने तथा परम आनन्द की प्राप्ति होने से इसको क्षेम और शिवरूप तथा अनाबाध भी कहते हैं। परन्तु इस स्थान को पूर्णरूप से संयम का पालन करने वाले महर्षि लोग ही प्राप्त करते हैं। क्योंकि यह स्थान सर्वोत्तम और सर्वोच्च तथा सब के लिए उपादेय है।
___ अब फिर इसी विषय में कहते हैंतं ठाणं सासर्यवासं, लोगग्गंमि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकरा मुणी ॥८॥