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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[प्रयोविंशाध्ययनम्
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टीकाकेशी मुनि को उत्तर देते हुए गौतम स्वामी कहते हैं कि लोक के अग्रभाग में ऐसा एक स्थान है कि जहाँ पर जरा और मृत्यु का अभाव है तथा किसी प्रकार की व्याधि और वेदना की भी वहाँ पर सत्ता नहीं एवं वह स्थान ध्रुव, निश्चल अर्थात् शाश्वत है परन्तु उस स्थान तक पहुँचना अत्यन्त कठिन है । तात्पर्य यह है कि उस स्थान पर पहुँचने के लिए सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीन साधन हैं अर्थात् इनके द्वारा ही वहाँ पर पहुँचा जा सकता है परन्तु •इनका, सम्यक्तया सम्पादन करना भी बहुत कठिन है। यहाँ पर गाथा में जो 'ध्रुव' पद दिया है, उसका अभिप्राय यह है कि वह स्थान अल्पकालभावी नहीं किन्तु शाश्वत अर्थात् सदा रहने वाला है। - इसके अनन्तर उक्त विषय में इन दोनों महापुरुषों का जो प्रश्नोत्तर होता है, अब शास्त्रकार उसका दिग्दर्शन कराते हैं । यथाठाणे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु , गोयमो इणमब्बवी ॥८॥ स्थानं चेति किमुक्तं ? केशी गौतममब्रवीत् । ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु , गौतम इदमब्रवीत् ॥८२॥
पदार्थान्वयः-ठाणे-वह स्थान के-कौन-सा वुत्ते-कहा गया है, इत्यादि । शेष सब कुछ प्रथम की तरह ही जानना ।
टीका केशीकुमार ने फिर कहा कि हे गौतम ! वह स्थान कौन-सा कहा गया है-कौन-सा माना गया है कि जिस स्थान पर जन्म, जरा और मृत्यु तथा शोक, रोग आदि दुःखों का अभाव है ? तथा जिस स्थान पर जाकर यह जीव अजर अमर आदि नामों से युक्त हो जाता है क्योंकि जो लोग आस्तिक हैं, उनका सारा उद्योग उसी स्थान के लिए है कि जहाँ पर उक्त प्रकार की आधि-व्याधियों को स्थान नहीं है। कृपया आप उस स्थान का स्पष्ट शब्दों में निर्देश करें। ' केशीकुमार के उक्त कथनानुसार गौतम स्वामी ने जो उत्तर दिया, अब उसका उल्लेख करते हैं। यथा