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त्रयोविंशध्यियनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
गौतममब्रवीत् ।
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भानुश्चेति क उक्तः, केशी ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु गौतम
इदमब्रवीत् ॥७७॥
टीका - इस गाथा का सब विचार पहले की तरह ही समझ लेना और विशेष इतना ही है कि गौतम स्वामी से केशीकुमार कहते हैं कि भाणू - सूर्य के - कौन-सा - कहा है । शेष सब कुछ पहले आई हुई गाथाओं के समान ही है । अब गौतम स्वामी उत्तर देते हैं
उग्गओ खीणसंसारो, सव्वष्णू जिणभक्खरो । सो करिस्सर उज्जोयं सव्वलोगम्मि पाणिणं ॥७८॥ क्षीणसंसारः, सर्वज्ञो करिष्यत्युद्योतं, सर्वलोके
जिनभास्करः ।
उद्गतः
स
प्राणिनाम् ॥७८॥
पदार्थान्वयः - उग्गंओ - उदय हुआ खीणसंमारो-क्षीण हो गया है संसार जिसका सव्वण्णू - सर्वज्ञ जिणभक्खरो - जिनभास्कर सो - वह करिस्सर - करेगा उज्जयं-उद्योत सव्वलोगम्मि - सर्वलोक में पाणिणं - प्राणियों को ।
मूलार्थ - वीण हो गया है संसार जिनका ऐसे सर्वज्ञ जिनेन्द्ररूप भास्कर का उदय हुआ है । वही सर्वलोक में प्राणियों को उद्योत करेगा ।
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टीका - गौतम स्वामी कहते हैं कि जिस आत्मा का संसार-भ्रमण क्षय हो चुका है अर्थात् जिसने चारों प्रकार के घाती कर्मों का नाश करके कैवल्य पद प्राप्त कर लिया है अतएव वे सर्वज्ञ और समदर्शी हो गये हैं, वे ही जिनेन्द्र भगवान् वास्तव में सूर्य हैं, जिनका कि इस समय उदय हुआ है । इसलिए लोक को – अन्धकारव्याप्त समस्त प्राणियों को वे ही प्रकाश देने वाले हैं और देंगे । इस कथन का अभिप्राय है। कि जैसे उदय को प्राप्त हुआ सूर्य संसार के सब अन्धकार को दूर कर देता है, ठीक उसी प्रकार जिनेन्द्र भगवान् भी आत्मगत अज्ञान और मिथ्यात्वरूप अन्धकार दूर करने में दूसरे भास्कर हैं। इसके अतिरिक्त उक्त गाथा से प्रतीत होता है कि भगवान् वर्द्धमान स्वामी के समय में इस आर्यभूमि में अज्ञानता और अन्धविश्वास का अधिक प्राबल्य था । बहुत से भव्य जीव अज्ञानता के अन्धकारमय