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________________ १०६० ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [प्रयोविंशाध्ययनम् की आवश्यकता पड़ती है। जैसे कोई अन्धा पुरुष वस्तु के ग्रहण अथवा विसर्जन आदि का काम यथाविधि नहीं कर सकता, इसी प्रकार अन्धकारव्याप्त पुरुष भी किसी कार्य को व्यवस्थापूर्वक सम्पादन नहीं कर सकता । [ 'अन्धमिवान्धं चक्षुः प्रवृत्तिनिवर्तकत्वेनार्थात् जनं करोत्यन्धकारस्तस्मिन् , तमसि प्रतीते' ] लोक का अर्थ जगत् है। अब गौतम स्वामी कहते हैंउग्गओ विमलो भाणू, सव्वलोयपभंकरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोगम्मि पाणिणं ॥७६॥.. उद्गतो विमलो भानुः, सर्वलोकप्रभाकरः । सः करिष्यत्युद्योतं, सर्वलोके प्राणिनाम् ॥७६॥ ___पदार्थान्वयः-उग्गओ-उदय हुआ है विमलो-निर्मल भाणू-सूर्य सव्वलोगपभंकरो-सर्वलोक में प्रकाश करने वाला सो-वह उज्जोयं-उद्योत करिस्सइकरेगा सव्वलोगम्मि-सर्वलोक में पाणिणं-प्राणियों को। . . मूलार्थ हे भगवन् ! सर्वलोक में प्रकाश करने वाला उदय हुआ .. निर्मल सूर्य इस लोक में सर्व प्राणियों को प्रकाश करेगा। . टीका-गौतम स्वामी कहते हैं कि जगत् में फैले हुए घोर अन्धकार से • व्याप्त प्राणियों को सर्वलोक में प्रकाश करने वाला उदय हुआ निर्मल सूर्य ही प्रकाश देगा । क्योंकि अन्धकार को दूर करके प्रकाश का देने वाला एकमात्र सूर्य ही है। अतः वही उद्योत करेगा । यहाँ पर 'विमलो'-निर्मल यह सूर्य का विशेषण इसलिए दिया गया है कि बादलों से घिरे हुए सूर्य में उतना प्रकाश देने की शक्ति नहीं होती, जितनी कि निर्मल सूर्य में होती है। . . . इस विषय को स्फुट करने के लिए केशीकुमार और गौतम स्वामी के बीच जो प्रश्नोत्तर हुआ, अब उसका वर्णन करते हैं । यथा भाणू अ इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥७॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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