________________
वंशाध्ययनम् ]
हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
[ १०५६
संसार - समुद्र से पार होने का एक साधनमात्र है । अतः पार होने के बाद अर्थात् मोक्ष में चले जाने के अनन्तर इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं रहती ।
गौतम स्वामी के इस उत्तर को सुनकर अब अन्य प्रश्न का प्रस्ताव करते हुए केशीकुमार कहते हैं
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥७४॥
साधु गौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो अन्योऽपि संशयो मम, तं मां
मे संशयोऽयम् । कथय गौतम ! ॥७४॥
टीका - इस गाथा का सम्पूर्ण भावार्थ पहले की तरह ही जान लेना । इस प्रकार दशवें प्रश्नद्वार का वर्णन करने के अनन्तर ग्यारहवें प्रश्नद्वार का प्रस्ताव करते हुए अब प्रश्नोत्तर रूप से अन्धकार के विषय का वर्णन करते हैं । यथा— अंधयारे तमे घोरे, चिट्ठति पाणिणो को करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोगम्मि
बहू । पाणिणं ॥७५॥
कः
अन्धकारे तमसि घोरे, तिष्ठन्ति प्राणिनो बहवः । प्राणिनाम् ॥७५॥ करिष्यत्युद्योतं, सर्वलोके पदार्थान्वयः — अंधयारे -अन्धकार घोरे - घोर तमे - तमरूप में बहू - बहुत से पाणिणो - प्राणी चिट्ठति - ठहरते हैं को- कौन उज्जोयं - उद्योत करिस्सह- करेगा सव्वलोग म्मि - सर्वलोक में पाणिणं - प्राणियों को 1
मूलार्थ - हे गौतम ! बहुत से प्राणी घोर अन्धकार में स्थित हैं। सो इन सब प्राणियों को लोक में कौन उद्योत करता है ?
टीका – केशीकुमार श्रमण कहते हैं कि हे गौतम ! इस संसार में एक बड़ा घोर भयानक — अन्धकार है। उस अन्धकार में बहुत से जीव ठहरे हुए हैं अर्थात् बहुत से प्राणी इस अन्धकार से व्याप्त हैं। ऐसी दशा में इन प्राणियों को लोक में कौन उद्योत- - प्रकाश देने में समर्थ है ? तात्पर्य यह है कि अन्धकार की दशा मनुष्य rity क्रियाओं के यथारुचि सम्पादन करने में असमर्थ है। इसलिए उसे प्रकाश