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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[त्रयोविंशाध्ययमम्
भयानक जंगल में भटक रहे थे। इन सब कुसंस्कारों को जिनेन्द्र भगवान् श्रीवर्द्धमान स्वामी ने दूर किया।
गौतम स्वामी के उक्त उत्तर को सुनकर, अन्य प्रश्न का प्रस्ताव करते हुए अब केशीकुमार फिर कहते हैंसाहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मझ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥७९॥ साधु गौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे संशयोऽयम् ।.. अन्योऽपि संशयो मम, तं मां कथय गौतम ! ॥७९॥
टीका-इसका भावार्थ प्राग्वत् ही जान लेना। ___ इस प्रकार ग्यारहवें प्रश्नद्वार का वर्णन किया गया। अब बारहवें प्रश्नद्वार का आरम्भ करते हैं। उसमें सर्वज्ञ और सर्वदर्शी आत्माओं की सदैव काल स्थिति कहाँ पर है, इस अभिप्राय से प्रेरित होकर केशीकुमार ने जिस प्रश्न का प्रस्ताव किया है, अब उसका दिग्दर्शन कराते हैं । यथासारीरमाणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सिवमणाबाहं, ठाणं किं मन्नसी मुणी ! ॥८॥ शारीरमानसैर्दुःखैः , वाध्यमानानां प्राणिनाम् । क्षेमं शिवमनाबाधं, स्थानं किं मन्यसे मुने ! ॥८॥
पदार्थान्वयः-सारीर-शारीरिक और माणसे-मानसिक दुक्खे-दुःखों से बज्झमाणाण-बाध्यमान पाणिणं-प्राणियों को खेम-क्षेम-व्याधिरहित सिवम्सर्वोपद्रवरहित अणाबाई-स्वाभाविक पीडारहित ठाणं-स्थान किं-कौन-सा मसीमानते हो मुणी-हे मुने !
मूलार्थ हे मुने ! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीडित प्राणियों के लिए क्षेम और शिव रूप तथा बाधाओं से रहित आप कौन-सा स्थान मानते हो?
टीका-केशीकुमार श्रमण गौतम स्वामी से पूछते हैं कि हे मुने ! जो. प्राणी शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीडित हो रहे हैं, उनके लिए क्षेम-व्याधि