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प्रयोविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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मूलार्थ जो नौका छिद्रों वाली होती है, वह पार ले जाने वाली नहीं होती किन्तु जो नौका छिद्रों से रहित है, वह अवश्य पार ले जाने वाली होती है ।
टीका-केशीकुमार के प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम स्वामी ने कहा कि हे भगवन् ! जो नाव छिद्रों वाली है, उस पर आरूढ हुआ पुरुष कभी पार नहीं जा सकता । क्योंकि छिद्रों के द्वारा उसमें जल भरता चला जाता है । अत: वह पार ले जाने को समर्थ नहीं किन्तु मध्य में ही डुबो देने वाली है। विपरीत इसके जो नौका छिद्रों से रहित है, उस पर आरूढ हुआ पुरुष अवश्य पार जा सकता है। क्योंकि छिद्ररहित होने से उसमें जल का प्रवेश नहीं होता । इसलिए वह पार ले जाने को समर्थ है । गौतम स्वामी के इस कथन का तात्पर्य यह है कि समुद्र पार करने के लिए मैंने जिस नौका का आश्रय लिया है, वह छिद्रों सहित नहीं किन्तु छिद्रों से रहित अतएव विपरीत चलने वाली नहीं है। इसलिए उक्त प्रकार की सुदृढ नौका पर आरूढ होता हुआ मैं इस संसार-समुद्र को अवश्यमेव पार कर जाने का विश्वास रखता हू ।
गौतम स्वामी के उक्त उत्तर को सुनकर केशीकुमार ने उनके प्रति जो कुछ कहा, अब उसका वर्णन करते हैं
नावा य इइ का वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥७२॥ नौश्चेति कोक्ता, केशी गौतममब्रवीत् । ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु, गौतम इदमब्रवीत् ॥७२॥
पदार्थान्वयः–नावा-नौका का-कौन-सी वुत्ता-कही है, इत्यादि सब पदार्थ पूर्ववत् जान लेना।
मूलार्थ-बह नौका कौन-सी है, इस प्रकार केशीकुमार ने गौतम मुनि के प्रति कहा, इत्यादि सब पूर्ववत् ही जान लेना ।
टीका-वह नौका कौन-सी है, उपलक्षण से नाविक कौन है तथा यह समुद्र और इस समुद्र का परला किनारा क्या है, इत्यादि । केशी मुनि के प्रश्न का सब रहस्य प्रथम की तरह ही समझ लेना । लेख-विस्तार के भय से अधिक पुनरुक्ति नहीं की गई।
अब इसके प्रत्युत्तर में गौतम स्वामी कहते हैं कि