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अयोविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम्।
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उन बहते-डूबते हुए जीवों के बचाव के लिए कौन-सा ऐसा द्वीप है कि जहाँ जाकर शांतिपूर्वक निवास किया जाय ? क्योंकि बहते हुए प्राणी को किसी आश्रय का मिल जाना उसकी रक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है । इसलिए महाप्रवाह में बहते हुए प्राणियों को शरण, गति और प्रतिष्ठा को देने वाले द्वीप के स्वरूप का आप अवश्य वर्णन करें, यह केशीकुमार के कथन का सारांश है। _उक्त प्रश्न के उत्तर में श्रीगौतम स्वामी ने जो कुछ कहा, अब उसका
वर्णन करते हैं
अस्थि एगो महादीवो, वारिमझे महालओ। महाउदगवेगस्स , गई तत्थ न विजई ॥६६॥ अस्त्येको महाद्वीपः, वारिमध्ये महालयः । महोदकवेगस्य . , गतिस्तत्र न विद्यते ॥६६॥
पदार्थान्वयः-अस्थि-है एगो-एक महादीवो-महाद्वीप वारिमज्झे-जल के मध्य में महाउदगवेगस्स-महान् उदक वेग की तत्थ-वहाँ पर गई-गति न विजई-नहीं है।
मूलार्थ—समुद्र के मध्य में एक महाद्वीप है। वह बड़े विस्तार वाला है। जल के महान् वेग की वहाँ पर गति नहीं है।
टीका केशीकुमार के प्रति गौतम स्वामी कहते हैं कि समुद्र के मध्य में एक बड़ा भारी द्वीप है। वह द्वीप लम्बाई और चौड़ाई में बड़ा विस्तृत है तथा जल से बहुत ऊँचा है। अतः वायु के द्वारा प्रेरित किये जाने पर भी जल के वेग की वहाँ पर गति नहीं होती। तात्पर्य यह है कि पानी का प्रवाह उस महाद्वीप में प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए वह डूबते हुए प्राणियों का पूर्ण सहायक है। अर्थात् वहाँ पहुँच जाने पर फिर जल के प्रवाह का भय नहीं रहता किन्तु वहाँ पर पहुँच जाने के बाद हर एक प्राणी आनन्दपूर्वक रह सकता है। परन्तु नियम यह है कि पानी के वेग से पीडित जीवों को एक समय वहाँ-उस द्वीप में पहुँच जाना चाहिए ?
गौतम स्वामी के इस कथन को सुनकर केशीकुमार कहते हैं