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________________ १०५२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [त्रयोविंशाध्ययनम् vvv इससे सिद्ध हुआ कि उनका जो कथन है, वह सर्वोत्तम मार्ग है । उस पर चलने वाले पुरुष का कभी भी पतन नहीं होता। ___यह सुनकर केशीकुमार कहते हैं किसाहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मझं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥६॥ साधु गौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे संशयोऽयम् । अन्योऽपि संशयो मम, तं मां कथय गौतम ! ॥४॥ - इस गाथा का अर्थ पहले अनेक वार आ चुका है। टीका-इस प्रकार आठवें द्वार का वर्णन किया गया। अब प्रश्न के नौवें द्वार का वर्णन किया जाता है, जिसके सम्बन्ध में ऊपर की गाथा में प्रस्ताव किया गया है। तथाहिमहाउदगवेगेणं , वुझमाणाण पाणिणं। सरणं गई पइटुं य, दीवं कं मन्नसी ? मुणी ! ॥६५॥ महोदकवेगेन , उह्यमानानां प्राणिनाम् । शरणं गति प्रतिष्ठां च, द्वीपं कं मन्यसे ? मुने ! ॥६५॥ __ पदार्थान्वयः-महाउदगवेगेणं-महान् उदक के वेग से वुझमाणाणडूबते हुए पाणिणं-प्राणियों को सरणं-शरण रूप गई-गतिरूप य-और पइह-प्रतिष्ठा रूप दीव-द्वीप क-कौन-सा मनसी-मानते हो मुणी-हे मुने ! ___ मूलार्थ हे सुने ! महान् उदक के वेग में बहते हुए प्राणियों को शरणागति और प्रतिष्ठा रूप द्वीप आप किसको मानते हो ? ____टीका केशीकुमार, गौतम स्वामी से पूछते हैं कि हे मुने ! महान् उदकमहास्रोत के वेग-प्रवाह में जो प्राणी बह रहे हैं-डूब रहे हैं, उनके सहारे के लिए अर्थात् जहाँ जाकर स्थिरतापूर्वक निवास किया जा सके ऐसा शरण, गति और प्रतिष्ठा रूप द्वीप कौन-सा है ? तात्पर्य यह है कि जिस समय पानी का महाप्रवाह. आता है, उस समय अल्प सत्त्व वाले जीव उसमें बहने-डूबने लगते हैं। सो
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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