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________________ त्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । अब गौतम स्वामी के द्वारा दिये गये उत्तर का उल्लेख करते हैं " कुप्पवयणपासण्डी सव्वे उम्मग्गपट्टिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥६३॥ [ १०५१ " कुप्रवचनपाखण्डिनः सर्व उन्मार्गप्रस्थिताः । सन्मार्गं तु जिनाख्यातम्, एष मार्गों हि उत्तमः ॥ ६३ ॥ पदार्थान्वयः — कुप्पवयण - कुप्रवचन के मानने वाले पास एडी - पाखण्डी लोग सब्वे- सभी उम्मग्ग-उन्मार्ग में पहिया - प्रस्थित हैं सम्मग्गं - सन्मार्ग तो जिणक्खायंजिनभाषित हैं एस- यह मग्गे - मार्ग हि-निश्चय से उत्तमे - उत्तम है तु-प्राग्वत् । मूलार्थ — कुदर्शनवादी सभी पाखण्डी लोग उन्मार्ग में प्रस्थित हैं । सन्मार्ग तो जिनभाषित है और यही उत्तम मार्ग है । टीका- गौतम स्वामी कहते हैं कि जितने भी कुप्रवचन के मानने वाले पाखण्डी लोग हैं, वे सभी उन्मार्ग पर चलने वाले हैं अर्थात् उनका जो कथन है, वह उन्मार्ग है । 'सन्मार्ग तो जिनेन्द्रदेव का कहा हुआ ही है। इसलिए यही उत्तम मार्ग है । इस कथन का अभिप्राय यह है कि पाखण्डियों के मार्ग में पदार्थों का स्वरूप याथातथ्य रूप में वर्णन नहीं किया गया । अतः उसको उन्मार्ग के तुल्य कहा गया है और विपरीत इसके जिनके मार्ग में पदार्थों का स्वरूप यथार्थ प्रतिपादन किया गया है, इसलिए वह सन्मार्ग के समान है । उदाहरणार्थ — जीवादि पदार्थों का जो स्वरूप जिनेन्द्रदेव ने प्रतिपादन किया है, उसके समान अन्य किसी दर्शन ने भी प्रतिपादन नहीं किया । अथवा ऐसा कहिए कि वस्तुतत्त्व के अनुरूप जीवादि पदार्थों का जिस प्रकार का स्वरूप जिनदर्शन में प्रतिपादन किया गया है, वैसा याथातथ्य स्वरूप अन्य दर्शनों में उपलब्ध नहीं होता । कारण कि वे वादी लोग राग-द्वेषादि दोषों से युक्त होने के कारण यथार्थवक्ता या आप्त पुरुष नहीं हो सकते और विपरीत इसके जिनेन्द्र देव रागादि दोषों से मुक्त हैं। इसलिए उनके कथन में किसी प्रकार का पक्षपात नहीं आ सकता । अतः उनका जो कथन है, वह वस्तुस्वरूप के अनुसार अथच निर्दोष है क्योंकि वीतराग होने से वे यथार्थवक्ता और आप्त पुरुष हैं ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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