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________________ उत्तराध्ययन सूत्रम् [ त्रयोविंशाध्ययनम् ass के बुत्ते, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥६७॥ गौतममब्रवीत् । १०५४ ] द्वीपश्चेति क उक्तः, केशी ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु गौतम इदमब्रवीत् ॥६७॥ पदार्थान्वयः—— दीवे—द्वीप के कौन-सा बुत्ते- कहा गया है इइ - इस प्रकार केसी - केशीकुमार ने गोयमं - गौतम के प्रति अब्बवी - कहा । इत्यादि सब पूर्व की तरह जान लेना । मूलार्थ — हे गौतम ! वह महाद्वीप कौन-सा कहा गया है, इस प्रकार केशीकुमार के कहने पर उसके प्रति गौतम स्वामी इस प्रकार बोले । टीका - यद्यपि गौतम स्वामी ने जो उत्तर दिया, उसको केशीकुमार ने अच्छी तरह से समझ लिया परन्तु पास में बैठी हुई जनता को उसका स्फुट रूप से रहस्य समझाने के लिए केशीकुमार मुनि ने उनके प्रति द्वीप के विषय में फिर प्रश्न किया है कि वह महाद्वीप कौन-सा है, जहाँ पर जाने से प्राणियों को समुद्र के प्रवाह में डूबने का फिर भय नहीं रहता । इत्यादि । उक्त प्रश्न का गौतम स्वामी ने जो उत्तर दिया, अब उसका वर्णन करते हैंजरामरणवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । धम्म दीवो पट्टा, गई सरणमुत्तमं ॥६८॥ " जरामरणवेगेन उह्यमानानां प्राणिनाम् । " धर्मों द्वीपः प्रतिष्ठा च गतिः शरणमुत्तमम् ॥६८॥ पदार्थान्वयः — जरा-बुढ़ापा मरण - मृत्यु के वेगेणं - वेग से वुज्झमाणाडूबते हुए पाणिणं - प्राणियों को धम्मो धर्म दीवो - द्वीप है पट्ठा-प्रतिष्ठान है यऔर गई-गति रूप है शरणं - शरणभूत है उत्तमं - - उत्तम है । मूलार्थ — जरा-मरण के वेग से डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म द्वीप . प्रतिष्ठान रूप है और उसमें जाना उत्तम शरण रूप है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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