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प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[१०४६ कुप्पहा बहवे लोए, जेसिं नासन्ति जन्तवो। अदाणे कहं वट्टन्तो, तंन नाससि गोयमा ! ॥६०॥ कुपथा बहवो लोके, यैर्नश्यन्ति जन्तवः । अध्वनि कथं वर्तमानः, त्वं न नश्यसि गौतम ! ॥६०॥
पदार्थान्वयः-कुप्पहा-कुपथ बहवे-बहुत से हैं लोए-लोक में जेसिं-जिनसे जन्तवो-जीव नासन्ति-नाश पाते हैं अद्धाणे मार्ग में कह-कैसे तं-तुम वदृन्तोवर्तते हो गोयमा-हे गौतम ! न नाससि-नाश को प्राप्त नहीं होता।
मूलार्थ हे गौतम ! लोक में ऐसे बहुत से कुमार्ग हैं, जिन पर चलने से जीव सन्मार्ग से भ्रष्ट हो जाते हैं परन्तु आप सन्मार्ग में चलते हुए उससे भ्रष्ट क्यों नहीं होते ?
_टीका-केशीकुमार मुनि कहते हैं कि संसार में ऐसे बहुत से कुमार्ग हैं, जिन पर चलने से जीव सन्मार्ग से भ्रष्ट हो जाते हैं परन्तु आप सन्मार्ग में प्रवृत्त हो रहे हैं और उससे कभी भ्रष्ट नहीं होते । इसका क्या कारण १ तात्पर्य यह है कि जैसे अन्य जीव, सन्मार्ग से भ्रष्ट होकर नाश को प्राप्त हो रहे हैं अर्थात् नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव कर रहे हैं, उसी प्रकार आप भी सन्मार्ग से गिरकर दुःख को प्राप्त क्यों नहीं होते ? इसका कारण बतलाइए ?
अब इस प्रश्न के उत्तर में गौतम स्वामी कहते हैं किजे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपदिया। ते सव्वे वेइया मझं, तो न नस्सामहं मुणी ॥६॥ ये च मार्गेण गच्छन्ति, ये चोन्मार्गप्रस्थिताः । ते सर्वे विदिता मया, तस्मान्न नश्याम्यहं मुने ! ॥६१॥ : पदार्थान्वयः-जे-जो मग्गेण मार्ग से गच्छन्ति-जाते हैं य-और जे-जो उम्मग्ग-उन्मार्ग में पहिया-प्रस्थित हैं ते-वे सव्वे-सर्व वेइया-विदित हैं मभं• मेरे को तो-इसलिए मुणी-हे मुने ! हं-मैं न नस्सामि-सन्मार्ग से च्युत नहीं होता ।