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प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम्। [१०४७
गौतम स्वामी के उपर्युक्त उत्तर को सुनकर केशीकुमार मुनि और गौतम खामी का इस प्रश्न के सम्बन्ध में जो कुछ विचार हुआ, अब उसका वर्णन करते हैंआसे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥५७॥ अश्वश्चेति क उक्तः, केशी गौतममब्रवीत् । ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु, गौतम इदमब्रवीत् ॥५७॥
___ पदार्थान्वयः-आसे-अश्व के-कौन सा वुत्ते-कहा गया है इइ-इस प्रकारबाकी का भावार्थ प्रथम आई हुई गाथाओं के समान ही जानना ।
मूलार्थ हे गौतम ! आप अश्व किसको कहते हैं ? केशीकुमार के इस कथन को सुनकर गौतम स्वामी ने उनके प्रति इस प्रकार कहा।
____टीका-सभा में उपस्थित हुए अन्य लोगों के बोधार्थ, केशीकुमार ने गौतम स्वामी से फिर कहा कि हे गौतम ! आप अश्व किसको कहते हैं ? अर्थात् आपके मत में वह अश्व कौन-सा है तथा उपलक्षण से सन्मार्ग और कुमार्ग आप किसे समझते हैं ? एवं श्रुतरश्मि से आपका क्या तात्पर्य है ? इत्यादि । यहाँ पर भी प्रथम की भाँति ही केशीकुमार ने गौतम के प्रति उक्त गाथा में कहे हुए अश्वादि के सम्बन्ध में प्रश्न किया है, अर्थात् इस प्रश्न से उनका तात्पर्य यह था कि पास में बैठे हुए सभ्य पुरुषों को वस्तुतत्त्व से अवगत कराना है। ___अब गौतम स्वामी के उत्तर का वर्णन करते हैंमणो साहस्सिओ भीमो, दुगुस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कन्थगं ॥५०॥ मनः साहसिको भीमः, दुष्टाश्वः परिधावति । तं सम्यक् तु निगृह्णामि, धर्मशिक्षायै कंथकम् [इव] ॥५८॥
पदार्थान्वयः-मणो-मन साहस्सिओ-साहसिक भीमो-रौद्र दुहस्सो-दुष्ट अश्व है, जो परिधावइ-चारों ओर भागता है तं-उसको सम्म-सम्यक् प्रकार से