________________
त्रयोविंशाध्ययनम् ]
हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
[ १०२७
सिद्धि में उद्यत हुए हैं तो फिर इन्हों ने परस्पर के लिंग में भेद क्यों डाला ? तात्पर्य यह है कि इनके अनुयायी मुनियों के वेष में भेद क्यों पड़ा ? क्या लिंग—वेष के भेद किये जाने पर आपके मन में विप्रत्यय - अविश्वास उत्पन्न नहीं होता ? यहाँ पर लिंग नाम वेष का है और उसी से साधु की पहचान होती है 'लिंग्यते— गम्यते अनेनायं व्रतीतिलिंगं वर्षाकल्पादिरूपो वेषः' सो जबकि लिंग परीक्षा के वास्ते है तो फिर अचेलक और सचेलक रूप दो प्रकार का भेद क्यों किया गया ? श्री वर्द्धमान स्वामी ने अचेलक और मानोपेत कुत्सित व धारण करने की आज्ञा दी . पार्श्वनाथ ने इसके प्रतिकूल सचेलकधर्म अथ च बहुमूल्य वस्त्रों के धारण करने की आज्ञा प्रदान की है, तो क्या यह परस्पर सर्वज्ञता में भेद जतलाने का कारण नहीं है ? क्या आपके मन में इस प्रकार का विकल्प उत्पन्न नहीं होता । इस पूर्वोक्त प्रश्न के उत्तर में गौतम स्वामी ने जो कुछ कहा, अब उसका वर्णन करते हैं—
है और
भगवान्
केसिं एवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छ्रियं ॥३१॥ केशिनमेवं ब्रुवाणं तु गौतम इदमब्रवीत् । विज्ञानेन समागम्य, धर्मसाधनमीप्सितम् ॥३१॥
पदार्थान्वयः— केसिं— केशीकुमार के एवं - इस प्रकार बुवाणं-बोलने पर उसके प्रति गोयमो - गौतम इणं - यह अब्बवी - कहने लगे विन्नाणेण - विज्ञान से समागम्मजानकर धम्मसाहणं - धर्म साधन के उपकरण की इच्छियं - अनुमति दी है तुअवधारण अर्थ में है ।
मूलार्थ - केशीकुमार के इस प्रकार बोलने पर उसके प्रति गौतम स्वामी कहा कि, हे भगवन् ! विज्ञान से जानकर ही धर्म साधन के उपकरण की आज्ञा प्रदान की है।
टीका - केशीकुमार के उपपत्तिपूर्वक प्रश्न कर चुकने के बाद उसके उत्तर में गौतम स्वामी ने कहा कि, श्रीपार्श्वनाथ और वर्द्धमान स्वामी ने केवलज्ञान द्वारा जानकर धर्मसाधन के लिए वस्त्रादि के धारण की आज्ञा दी है। जैसेकि श्रीपार्श्वनाथ ने