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चतुर्दशाध्ययनम् ] .
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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पदार्थान्वयः-अज्जेव-आज ही धम्म-धर्म को पडिवजयामो-ग्रहण करेंगे जहिं-जिसके पवना-ग्रहण करने से न पुणब्भवामो-फिर संसार में जन्म मरण नहीं करेंगे अणागयं-विना मिले नेव-नहीं है किंचि-किंचिन्मात्र यपुनः सद्धा-श्रद्धा-अभिलाषा खम-योग्य है णे-हमको विणइत्तु-दूर करना राग-राग को।
___मूलार्थ-हम आज ही धर्म को ग्रहण करेंगे, जिस धर्म के ग्रहण से फिर संसार में जन्म नहीं होता। ऐसा किंचिन्मात्र भी पदार्थ इस संसार में नहीं है, जो कि इस जीव को न मिल चुका हो । अतः धर्म में श्रद्धा रखनी और कामादि के राग को दूर करना ही हमारा कर्तव्य है ।
टीका-पूर्वकाव्य में प्रकारान्तर से जीवन की अस्थिरता का वर्णन किया गया है । अब उसी के अनुसार वे दोनों कुमार अपने पिता से कहते हैं कि पिता जी ! हम आज ही धर्म को ग्रहण करेंगे क्योंकि धर्म के ग्रहण से हम जन्म और मरण दोनों से ही रहित हो सकते हैं अर्थात् फिर हमारा इस संसार में जन्म नहीं होगा । तथा आपने हमको कामभोगों के लिये वार २ आमंत्रित किया परन्तु विचार से देखो तो संसार में ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं जो कि इस जीव को कभी न कभी प्राप्त न हो चुका हो । तात्पर्य कि यह आत्मा अनेक प्रकार की ऊँची नीची अवस्थाओं में से गुजरा है, और अनेक प्रकार के पदार्थों से इसका सम्बन्ध होता रहा है। कभी यह राजा बना कभी रंक, कभी मनुष्य बना कभी तिर्यंच एवं कभी देव और कभी नारकी । तात्पर्य कि ऐसी कोई अवस्था नहीं कि जिसका इस जीव ने एक अथवा अनेक वार अनुभव न किया हो । तब इन कामभोगादि विषयों का, न मालूम, हमने कितनी वार उपभोग किया है । इसलिए हमारी रुचि तो केवलमात्र कामादि राग के त्याग और धर्म के आराधन में है, उसी को हम स्वीकार करेंगे।
- अपने पुत्रों के इस कथन को सुनकर भृगु पुरोहित ने अपनी यशा नानी भार्या से जो कुछ कहा, अब शास्त्रकार उसका वर्णन करते हैं