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प्रयोविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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पदार्थान्वयः-साहु-श्रेष्ठ है पन्ना-प्रज्ञा ते-तुम्हारी गोयम-हे गौतम ! छिनो-तू ने छेदन किया इमो-यह मे मेरा संसओ-संशय अन्नोवि-और भी मज्झमेरा संसओ-संशय है तं-उसको मे-मुझे गोयमा-हे गौतम ! कहसु-कहो। '
मूलार्थ हे गौतम! आपकी बुद्धि श्रेष्ठ है, आपने मेरे सन्देह को दूर किया। मेरा एक और भी संशय है । हे गौतम ! आप उसका अर्थ भी मुझ से कहो ?
टीका-केशीकुमार ने अपने प्रथम प्रश्न का उत्तर प्राप्त करके दूसरे प्रश्न का प्रस्ताव करते हुए गौतम स्वामी से कहा कि हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा बड़ी श्रेष्ठ है। आपने मेरे संशय को दूर कर दिया अब मेरा जो दूसरा संशय है उसको भी दूर करें ? केशीकुमार के इस कथन में कितनी साधुता और सरलता है यह अनायास ही प्रतीत हो सकती है। यहाँ पर इतना ध्यान रहे कि केशीकुमार के द्वारा उद्भावन किये गये संशय का गौतम स्वामी के द्वारा निराकरण करना तथा अन्य संशय के निराकरणार्थ प्रस्ताव करना इत्यादि प्रश्नोत्तररूप जितना भी सन्दर्भ है वह सब नाम मात्र इन दोनों महापुरुषों के शिष्य परिवार के हृदय में उत्पन्न हुए सन्देहों की निवृत्ति के लिए ही है । अन्यथा केशीकुमार के हृदय में तो इस प्रकार की न कोई शंका थी और न उसकी निवृत्ति के लिए गौतम स्वामी का प्रयास था । कारण कि मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानवालों में इस प्रकार के संशय का अभाव होता है। अतः यह प्रश्नोत्तररूप समप्र सन्दर्भ स्व शिष्यों तथा सभा में उपस्थित हुए अन्य भाविक सद्गृहस्थों के संशयों को दूर करने के लिए प्रस्तावित किया गया है। तथा इस गाथा में अभिमान से रहित होकर सत्य के ग्रहण करने का जो उपदेश ध्वनित किया गया है उसका अनुसरण प्रत्येक जिज्ञासु को करना चाहिए। ___ अब लिंग विषयक दूसरे प्रश्न का वर्णन करते हैंअचेलगो य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो। देसिओ वडमाणेण, पासेण य महाजसा ॥२९॥ अचेलकश्च यो धर्मः, योऽयं सान्तरोत्तरः'। देशितो वर्धमानेन, पार्श्वेण च महायशसा ॥२९॥
जो इमोत्ति—यश्वायं सान्तराणि वर्द्धमान शिष्य वस्त्रापेक्षया कस्यचित् कदाचिन्मान वर्ण विशेपितानि, उत्तराणि च बहुमूल्यतया प्रधानानि वस्त्राणि यस्मिन्बसौसान्तरोत्तरोधर्मः[कमसंयमी टीका।