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त्रयोविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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टीका-तिन्दुक बन में उपस्थित हुए गौतम स्वामी का भक्ति और प्रेमपुरस्सर स्वागत करने के अनन्तर केशीकुमार मुनि ने गौतम स्वामी के बैठने के लिए उस बन में रहे हुए पाँच प्रकार के पलाल कुश और तृणादि — जो कि मुनि के लिए उपादेय कहे हैं— शीघ्र ही उपस्थित कर दिये । तात्पर्य यह है कि आसनादि प्रदान के द्वारा उनकी प्रतिपत्ति-भक्ति की । शास्त्रों में साधु के लिए पाँच प्रकार के तृणादि के ग्रहण करने का विधान है, यथा— 'तिण पणगं पुण भणियं, जिणेहिं कम्मट्ठगंठिमहणेहिं । साली वीही कोद्दव रालग रण्णेतिणाइं च ।' तात्पर्य यह है कि जिनेन्द्र देव ने अष्टविध कर्मों के मर्दन के लिए पाँच प्रकार के तृण बतलाये हैं यथा-: —शाली, ब्रीही, कोद्दव रालक और अरण्य तृण आदि । केशीकुमार ने आसनादि रूप में ये तृणादि जोकि उस समय उनके पास विद्यमान थे— उनको अर्पण किये। इसी प्रकार केशीकुमार के शिष्यों ने गौतम स्वामी के शिष्यों का यथायोग्य सत्कार किया, यह बात भी उक्त गाथा के आन्तरिक भाव पर विचार करने से ध्वनित होती है ।
इस भांति पारस्परिक शिष्टाचार के अनन्तर जब वे दोनों महापुरुष अपने २ आसनों पर विराजमान हो गये तब उनकी शोभा किस प्रकार की थी अर्थात् वे किस प्रकार से सुशोभित हो रहे थे अब इस विषय का वर्णन करते हैं—
केसीकुमार
समणे, गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहन्ति, चन्दसूरसमप्पभा
॥१८॥
श्रमणः,
केशीकुमार गौतमश्च उभौ निषण्णौ शोभेते, चन्द्रसूर्यसमप्रभौ
॥१८॥
पदार्थान्वयः – केसी कुमार समणे - केशीकुमार श्रमण य-और गोयमे - गौतम महायसे - महान यशवाले उभओ - दोनों ही निसराणा -बैठे हुए सोहन्ति - शोभा पाते हैं चन्दसूरसमप्पभा-चन्द्र और सूर्य के समान प्रभावाले ।
को
महायशाः ।
मूलार्थ — केशीकुमार श्रमण और महायशस्वी गौतम ये दोनों ही बैठे हुए ऐसे शोमा पा रहे हैं जैसे अपनी कान्ति से चन्द्र और सूर्य शोभा पाते हैं । ठीका - इस गाथा में उपमा अलंकार के द्वारा केशीकुमार और गौतम मुनि ' और सूर्य के रूप में वर्णित किया है । यथा चन्द्रमा और सूर्य के समान
चन्द्रमा