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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[त्रयोविंशाध्ययनम्
प्रभा-कान्तिवाले वे दोनों महापुरुष अपने २ आसनों पर बैठे हुए सुशोभित हो रहे हैं। तात्पर्य यह है कि जैसे चन्द्रमा और सूर्य अपनी प्रभा-कान्ति से संसार को आह्लादित
और प्रकाशित करते हैं, तद्वत् वे दोनों ऋषि अपने शान्ति और तेजस्विता आदि सद्गुणों से भव्य जीवों को उपकृत कर रहे हैं। यहाँ पर चन्द्रमा के समान केशीकुमार और सूर्य के समान गौतम मुनि को समझना चाहिए, कारण यह है कि प्रस्तुत गाथा का जो वर्णन-क्रम है उसके अनुसार ऐसा ही प्रतीत होता है। इस कल्पना के लिए एक
और भी कारण है वह यह कि भगवान् वर्द्धमान स्वामी ने अपने शासन में जिस पद्धति को स्थान दिया है उसमें समय की अपेक्षा भगवान् पार्श्वनाथ के शासन की अपेक्षा तपश्चर्या को अधिक स्थान दिया है । अतः उनके शासन पर चलनेवाले गौतम मुनि में तपोबल की प्रधानता होने से उनको सूर्य से उपमित करना कुछ अधिक सुन्दर प्रतीत होता है, और वास्तव में तो दोनों-केशीकुमार और गौतम मुनि के लिए सूर्य और चन्द्रमा की उपमा देना किसी प्रकार से असंगत नहीं । सारांश तो यह है कि अपने शिष्य-समुदाय के साथ तपोवन में विराजमान हुए ये दोनों महापुरुष सूर्य और चन्द्रमा की तरह शोभा पा रहे हैं।
इस प्रकार तिन्दुक बन में उन दोनों महात्माओं के समागम के पश्चात् जो कुछ हुआ अब उसका उपक्रम करते हुए कहते हैंसमागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगासिया। गिहत्थाणं अणेगाओ, साहस्सीओ समागया ॥१९॥ समागता बहवस्तत्र, पाखण्डाः कौतुकाभिताः। गृहस्थानामनेकानां , सहस्राणि समागतानि ॥१९॥
____ पदार्थान्वयः-समागया-आगये बहू-बहुत से तत्थ-उस स्थान पर पासंडापाखण्डी लोग और कोउगासिया-कुतूहल के आश्रित-कौतूहली लोग अणेगाओअनेक गिहत्थाणं-गृहस्थों के समूह साहस्सीओ-सहस्रों हजारों समागया-इकट्ठे होगये।
- मूलार्य-उस बन में बहुत से पाखण्डी लोग और बहुत से छतूहली लोग तथा हजारों की संख्या में गृहस लोग मी एकत्रित हो गये। [उन दोनों महापुरुषों का शाखार्य सुनने के लिए।