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प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[१०११ पार्श्वनाथ भगवान् तेईसवें तीर्थंकर थे, और यह केशीकुमार उन्हीं की सन्तान में से है, तथा पार्श्वनाथ भगवान् का जो कुल है वह ज्येष्ठ है और उनकी कुल में के होने से केशीकुमार भी हमारे ज्येष्ठ—बड़े हैं अतः मुझे ही उनके पास जाना चाहिए। यह विचार करके गौतम मुनि अपने शिष्य-समुदाय को साथ लेकर केशीकुमार श्रमण से मिलने की इच्छा से तिन्दुक नामा उद्यान में आये । प्रस्तुत गाथा में योग्यता, प्रतिरूपज्ञता—विनीतता और विचारशीलता तथा कुल-मर्यादा का प्रतिपालन आदि सत्पुरुषोचित गुण-समुदाय का दिग्दर्शन बड़ी ही सुन्दरता से कराया गया है। यह गुण-समुदाय सत्पुरुषों के जीवन की विशिष्टता को परखने की उत्तम कसौटी है। इसके अतिरिक्त सत्पुरुषों के समागम में आने से मुमुक्षुजनों को कितना लाभ हो सकता है और विषय-सन्तप्त हृदयों में किस अंश तक शान्ति का स्रोत बहने लगता है इत्यादि की कल्पना भी इस से सहज में की जा सकती है।
जिस समय गौतम मुनि तिन्दुक उद्यान में केशीकुमार श्रमण के निकट पहुंचे उस समय उनके साथ केशीकुमार मुनि ने जिस सद्भावना को व्यक्त किया अब शास्त्रकार उसका वर्णन करते हैंकेसीकुमार समणे, गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्तिं, सम्मं संपडिवजई ॥१६॥ केशीकुमार श्रमणः, गौतमं दृष्ट्वागतम् । प्रतिरूपां प्रतिपत्तिम्, सम्यक् संप्रतिपद्यते ॥१६॥
पदार्थान्वयः केसीकुमार समणे-केशीकुमार श्रमण गोयम-गौतम को आगयं-आते हुए दिस्स-देखकर पडिरूवं-प्रतिरूपयोग्य पडिवत्ति-प्रतिपत्ति-भक्ति को सम्म-सम्यक्-भलीप्रकार संपडिवजई-ग्रहण करते हैं। .. मूढार्थ-गौतम मुनि को आते हुए देखकर केशीकुमार श्रमण ने, भक्ति-बहुमान पुरस्सर उनका स्वागत किया।
.. टीका-केशीकुमार श्रमण ने जब देखा कि भगवान् वर्द्धमान स्वामी के गणधर गौतम मुनि अपने शिष्य-परिवार को साथ में लेकर तिन्दुक बन में उनके पास आ रहे