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________________ प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [१००७ nnnnnnnnnnnnnnnnn कि इनका वेष और प्रकार का है तथा हमारा और प्रकार का । यदि हम दोनों के समुदाय एक ही धर्म के अनुयायी हैं तो फिर हमारे आचार विचार में भेद क्यों ? इसी प्रकार का सन्देह-मूलक विचार गौतम स्वामी के शिष्यों के मन में भी उत्पन्न हुआ। 'आचार' शब्द से यहाँ पर बाह्य आचार का ग्रहण अभिप्रेत है—'आचरणमाचारो वेषधारणादिको वाह्यः क्रियाकलाप इत्यर्थः' अर्थात् वेष-धारणादि जो बाह्य क्रिया कलाप है सो आचार है। तथा 'वा' शब्द यहाँ पर विकल्प और पुनः अर्थ में आया हुआ है और 'इमा' शब्द 'अयं' शब्द के अर्थ में ग्रहण किया गया है । प्रणिधि शब्द से मर्यादा विधि की सूचना दी गई है। ___ अब उक्त चिन्ता को प्रकट करते हुए कहते हैंचाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओं वद्यमाणेण, पासेण य महामुणी ॥१२॥ चातुर्यामश्च यो धर्मः, योऽयं पंचशिक्षितः । देशितो वर्धमानेन, पार्श्वेण च महामुनिना ॥१२॥ ___ पदार्थान्वयः-चाउजामो-चतुर्यामरूप जो-जो धम्मो-धर्म य-और जो-जो इमो-यह पंचसिक्खिओ-पाँच शिक्षारूप धर्म देसिओ-उपदेश किया बद्धमाणेण-वर्द्धमान स्वामी ने य-और पासेण-पार्श्वनाथ महामुणी-महामुनि ने । . मूलार्थ-महामुनि पार्श्वनाथ ने चतुर्यामरूप धर्म का और वर्द्धमान स्वामी ने पांच शिधारूप धर्म का उपदेश किया है। टीका-केशीकुमार और गौतमस्वामी के शिष्यों को जिन कारणों से सन्देह उत्पन्न हुआ उनका आंशिक स्पष्टीकरण इस गाथा में किया गया है । भगवान् पार्श्वनाथ ने तो चतुर्यामरूप धर्म अर्थात् अहिंसा आदि चार यमों-महाव्रतों की प्ररूपणा की है और श्रीवर्धमानस्वामी ने पाँच शिक्षारूप धर्म अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय—अचौर्य कर्म–ब्रह्मचर्य और अपरिप्रहरूप पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया है । इसका अभिप्राय यह है कि यदि इन दोनों महापुरुषों का सिद्धान्त एक ही है तो फिर धर्म के इन नियमों में संख्या-भेद क्यों है ? महामुनि
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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