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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[त्रयोविंशाध्ययनम्
आहारादि लाने के निमित्त आगमन होने से आपस में भेंट हो गई । दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और परस्पर के अवलोकन से दोनों के मन में एक दूसरे के लिए कई प्रकार के विकल्प उत्पन्न होने लगे। यद्यपि वे सब ज्ञानादि गुणों से युक्त, संयमशील और परम तपस्वी थे, तथा षटकाय की विराधना से मुक्त और उसकी रक्षा में सदा सावधान रहनेवाले थे, तथापि पृथक् २ स्थानों में ठहरने
और कतिपय नियमों में एकता न होने तथा वेष में भी विभिन्नता देखने से परस्पर में एक दूसरे के लिए शंका अथ च विकल्प का मन में उत्पन्न होना एक स्वाभाविक सी बात है इसलिए दोनों महर्षियों के शिष्य समुदाय के अन्तःकरण में एक दूसरे के लिए सन्देह उत्पन्न हुआ।
अब उसी सन्देह अथवा शंका के सम्बन्ध में कहते हैंकेरिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो। आयारधम्मप्पणिही , इमा वा सा व केरिसी ॥११॥ कीदृशो वायं धर्मः, अयं धर्मो वा कीदृशः । आचारधर्मप्रणिधिः , अयं वा स वा कीदृशः ॥११॥
पदार्थान्वयः केरिसो-कैसा है वा-अथवा इमो-यह धम्मो-धर्म वअथवा केरिसो-कैसा है आयार-आचार धम्म-धर्म प्पणिही-प्रणिधि इमा-यह हमारी वा-अथवा सा-इनकी केरिसी-कैसी है व-परस्पर अर्थ में है।
मूलार्थ-हमारा धर्म कैसा है, इनका धर्म कैसा है । तथा आचार, धर्म प्रणिधि हमारी और इनकी कैसी है।
टीका-जब दोनों का शिष्य-समुदाय एक दूसरे की ओर देखने लगा तब केशीकुमार के शिष्यों ने विचार किया कि हमारा धर्म कैसा है और इन गौतम के शिष्यों का धर्म कैसा है । तथा जो बाह्य वेष है वही धर्म हो रहा है, जिसके प्रभाव से जीव २१वें देवलोक तक जा सकते हैं । वही आचार की प्रणिधि [ व्यवस्थापन ] है वह हमारी और इनकी कैसी है । तात्पर्य यह है कि सर्वज्ञ के कहे हुए धर्म में भेद नहीं होना चाहिए परन्तु यहाँ पर भेद स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कारण