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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[प्रयोविंशाध्ययनम्
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पदार्थान्वयः-जिणे-परिषहों के जीतने वाला पासित्ति-पार्श्व इस नामेणंनाम से प्रसिद्ध हुआ अरहा-अर्हन् लोगपूइओ-लोकपूजित संबुद्धप्पा-संबुद्ध आत्मा य-और सन्वन्नू-सर्वज्ञ धम्मतित्थयरे-धर्मतीर्थ को करने वाला जिणे-समस्त कर्मों को क्षय करने वाला। .. मूलार्थ-पार्श्व नाम से प्रसिद्ध, परीषहों को जीतने वाला, अर्हन् लोकपूजित, सम्बुद्धात्मा, सर्वज्ञ तथा धर्मरूप तीर्थ को चलाने और समस्त कर्मों को क्षय करने वाला हुआ।
टीका-श्रीपार्श्वनाथ इस नाम से प्रसिद्ध तेईसवें तीर्थंकर का प्रस्तुत गाथा में उल्लेख किया गया है । तात्पर्य यह है कि भगवान महावीर स्वामी से २५० वर्ष पहले इस भारतभूमि को पार्श्वनाथ नाम के एक सुप्रसिद्ध महापुरुष ने अलंकृत किया था। वे जिन-सर्व प्रकार के परिषहों को जीतने वाले थे और देवेन्द्रादि से पूजित होने के अतिरिक्त वे सर्वलोकपूजित थे तथा उनका आत्मा ज्ञानज्योति से सर्व प्रकार से अवभासित था। वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे, एवं भव्य जीवों को संसार-समुद्र से पार करने के लिए उन्होंने धर्मरूप तीर्थ की स्थापना की और इसी लिए वे तीर्थकर हुए । अन्त में समस्त कर्मों का क्षय करके वे सिद्ध गति को प्राप्त हो गये। एतदर्थ ही उनको अरिहंत, सिद्ध और जिन के नाम से पुकारा जाता है। ___ अब उनके शिष्य केशीकुमार के विषय में कहते हैंतस्स लोगपदीवस्स, आसी सीसे महायसे । केसीकुमार समणे, विजाचरणपारगे ॥२॥ तस्य लोकप्रदीपस्य, आसीच्छिष्यो महायशः। केशीकुमारश्रमणः , विद्याचरणपारगः ॥२॥
पदार्थान्वयः-तस्स-उस लोगपदीवस्स-लोकप्रदीप का सीसे-शिष्य महायसे-महान् यशस्वी आसी-हुआ केसीकुमार-केशीकुमार समणे-श्रमण जो विजाचरणपारगे-विद्या और चारित्र का पारगामी था।
मूलार्थ—उस लोकप्रदीप भगवान् पार्श्वनाथ का महान् यशस्वी केशीकुमार . श्रमण नाम से प्रसिद्ध एक शिष्य हुआ, जो कि विद्या और चारित्र में परिपूर्ण था।