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________________ प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [EER टीका-लोकप्रदीप—संसार में सूर्य के समान प्रकाश करने वाले भगवान् पार्श्वनाथ का केशीकुमार नामक एक शिष्य था, जो कि बाल्यावस्था से ही वैराग्ययुक्त होता हुआ अविवाहित ही दीक्षित हो गया था। उसके केश बहुत ही कोमल और सुन्दर थे । इसी कारण वह श्रमण होने पर भी केशीकुमार के नाम से ही प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ । जैसा वह सुन्दर था, वैसा ही विद्या और चारित्र में भी परिपूर्ण था। तात्पर्य यह है कि आबालब्रह्मचारी होने से वह विद्या और चारित्र का भी पारगामी हुआ अर्थात् उसका चारित्र अतीव निर्मल था । यहाँ पर इतना और ध्यान रहे कि सूत्रकर्ता ने केशीकुमार को जो भगवान पार्श्वनाथ का शिष्य लिखा है, वह सामान्य निर्देश है। उसका तात्पर्य भगवान पार्श्वनाथ के परम्परागत शिष्य से है, साक्षात् शिष्य से नहीं । कारण यह है कि केशीकुमार, श्रमण भगवान महावीर के समय में विद्यमान था, जब कि भगवान पार्श्वनाथ को मोक्ष गये अनुमानतः अढाई सौ वर्ष हो चुके थे एवं उस समय इतनी आयु भी नहीं थी। इससे तो यही मानना पड़ता है कि केशीकुमार भगवान पार्श्वनाथ के हस्तदीक्षित शिष्य नहीं थे किन्तु उनकी शिष्यसंतति में से थे । वर्तमान समय की ऐतिहासिक गवेषणा से भगवान महावीर स्वामी से २५० वर्ष पहले श्रीपार्श्वनाथ का होना प्रमाणित होता है और श्रमण भगवान् महावीर के समय पर श्रीपार्श्वनाथ सन्तानीय शिष्य विद्यमान थे, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है और उनमें केशीकुमार का नाम सब से अधिक प्रसिद्ध है, क्योंकि भगवान् महावीर .. ' स्वामी के मुख्य शिष्य गौतम के साथ उनका साधुओं के आचार के विषय में बहुत ही लम्बा चौड़ा संवाद हुआ है। इससे भी उनका पार्श्वनाथ का सन्तानीय शिष्य होना ही प्रमाणित होता है। अन्य जैनागमों में भी इसका उल्लेख मिलता है। अतः उक्त गाथा में उनको केशीकुमार को जो श्रीपार्श्वनाथ का शिष्य लिखा है, उसका अभिप्राय हस्तदीक्षित शिष्य से नहीं किन्तु सन्तानीय शिष्य से है । अन्यथा श्रीमहावीर स्वामी के समय में उनका विद्यमान होना संगत नहीं हो सकता । अब फिर उसी के विषय में कहते हैंओहिनाणसुए बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयंते, सावत्थिं नगरिमागए ॥३॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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