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चतुर्दशाध्ययनम् ] ..
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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से वेष्टित कर रक्खा है ! क्योंकि जरा के कारण इस शरीर की कांति समय २ पर बदल रही है । तथा रात-दिन रूप शस्त्रों की धारा है, जिससे कि आयु रूप बन्धन टूट रहे हैं, ऐसा आप समझें । तात्पर्य कि रात-दिन के व्यतीत होते देर नहीं लगती । उससे आयुरूप रस्सी के टूट जाने से मृत्यु का आगमन भी अति शीघ्र हो जाता है और वह झट से इस जीव को यहां से उठाकर परलोक में भेज देता है । अतः हमको यही चिन्ता लगी हुई है कि इससे किस प्रकार बचा जाय । सो बचने का उपाय, हमको तो केवल धर्म ही प्रतीत होता है ।
अब फिर इसी विषय में कहते हैंजा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥२४॥ या या ब्रजति रजनी, न सा प्रतिनिवर्तते । अधर्म कुर्वाणस्य, अफला यान्ति रात्रयः ॥२४॥
___पदार्थान्वयः-जा जा-जो जो रयणी-रात्रि वच्चइ-जाती है न-नहीं सा-वह पडिनियत्तई-पीछे आती । अहम्म-अधर्म कुणमाणस्स-करते हुए की अफला-निष्फल राइओ-रात्रियाँ जन्ति-जाती हैं।
__मूलार्थ-जो जो रात्रि जाती है, वह पीछे लौटकर नहीं आती। अधर्म करने वाले की सब रात्रियाँ निष्फल जाती हैं।
टीका-कुमार कहते हैं कि हे पिता जी ! जो रात्रि चली जाती है, वह वापस लौटकर नहीं आती किन्तु अधर्म का सेवन करने वाले मनुष्य की सभी रात्रियाँ निष्फल ही जाती हैं । यद्यपि सूत्र में केवल रात्रि शब्द ही पढ़ा है परन्तु वह दिन का भी उपलक्षण समझना । तात्पर्य कि काल का चक्र रात-दिन के रूप में निरन्तर चला जा रहा है । इसमें जिसने तो धर्म का सेवन किया, उसने तो इसको सफल कर लिया और अधर्म का सेवन करने वाले ने इसको निष्फल बना दिया। जैसे कि जिन बालकों ने अपनी पहली अवस्था में विद्या का अध्ययन किया है, वे युवा अवस्था में अपनी विद्या से लाभ उठाते हुए स्वयं भी सुखी होते हैं तथा