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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ चतुर्दशाध्ययनम् टीका-पुत्रों के कथन पर भृगु पूछते हैं कि हे पुत्रो ! किसने इस लोक को पीडित किया है अर्थात् जिस प्रकार एक व्याध मृग को पीड़ा देता है उसी प्रकार इसको व्यथित करने वाला कौन है ? तथा चारों दिशाओं में इसको किसने वेष्टित किया है ? तात्पर्य कि जैसे जाल के द्वारा व्याध मृग को वेष्टित कर लेता है, उसी प्रकार इसको वेष्टित करने वाला कौन है ? एवं इस पर कौन से शत्रों की धारा पड़ती है ? अर्थात् जैसे कोई व्याध किसी मृग को अभिहनन करता है उसी प्रकार इस पर कौन से शस्त्र की धारा का आघात होता है ? हे पुत्रो ! तुम्हारे पूर्वोक्त कथन से मुझे बहुत चिंता हो रही है। इसका अभिप्राय यह है कि तुम मुझे स्पष्ट बतलाओ कि तुम को किस बात का कष्ट है क्योंकि बतलाने पर ही व्याधि का निदान और उसकी यथाविधि चिकित्सा हो सकती है । अतः तुम्हारे कष्ट की मुझे बहुत चिन्ता हो रही है।
__इस पर दोनों कुमारों ने उत्तर दिया किमच्चुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एवंताय! विजाणह ॥२३॥ मृत्युनाऽभ्याहतो लोकः, जरया परिवारितः । अमोघा रात्रय उक्ताः, एवं तात ! विजानीहि ॥२३॥
___पदार्थान्वयः-मच्चुणा-मृत्यु से अब्भाहओ-पीड़ित है लोगो-लोक जराए-जरा से परिवारिओ-परिवेष्टित किया हुआ. है अमोहा-शस्त्रधारा रयणीरात दिन वुत्ता-कहे हैं एवं-इस प्रकार ताय-हे पिता जी ! विजाणह-तुम जानो । - मूलार्थ-हे पिता जी ! यह लोक मृत्यु से पीड़ित हो रहा है । जरा से वेष्टित हो रहा है । रात दिन अमोघ शस्त्रधारा है । इस प्रकार से तुम जानो। .
टीका-कुमार बोले कि पिता जी ! मृत्यु से यह लोक पीड़ित हो रहा है अर्थात् इस लोक को मृत्यु ने दुःखी कर रक्खा है । तीर्थंकर, गणधर, इन्द्र, चक्री, केशव और राम इन सब को भी काल ने अपने विकराल मुख में वे लिया है, सामान्य पुरुषों की तो बात ही क्या है । तथा जरा ने इस लोक को सर्व प्रकार