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द्वाविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
तदनन्तर क्या घटना हुई, अब इसका वर्णन करते हैं— चीवराणि विसारंती, जहाजायत्ति पासिया । रहनेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठो अ तीइवि ॥३४॥
चीवराणि विस्तारयन्ती, यथाजातेति रथनेमिर्भग्नचित्तः पश्चाद् दृष्टश्च तयाऽपि ॥ ३४ ॥
दृष्ट्वा ।
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पदार्थान्वयः –—–— चीवराणि - वस्त्रों को विसारंती - फैलाती हुई जहाजायत्तिजैसे जन्मसमय में शरीर अनावृत रहता है तद्वत् नग्न हुई को पासिया - देखकर रहनेमी-रथनेमि नामक मुनि भग्गचित्तो - भग्नचित्त हो गया अ- और तीइवि - उसने भी पच्छा दिट्ठो - उस मुनि को पीछे ही देखा ।
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मूलार्थ - भीगे हुए वस्त्रों को फैलाती हुई यथाजात - नग्न — राजीमती को देखकर रथनेमि मुनि का चित्त भग्न हो गया । उसने —-राजीमती ने भी उस मुनि को पीछे ही देखा ।
टीका- - उक्त गुफा में प्रवेश करने के अनन्तर राजीमती जब अपने भीगे हुए वस्त्रों को उतारकर फैलाने लगी, तब वह जैसे जन्मसमय की वस्त्ररहित अवस्था होती है, तद्वत् हो गई अर्थात् नग्न हो गई । उसकी इस अवस्था को देखकर वहाँ गुफा में रहे हुए रथनेमि नाम के एक साधु के मन में विकार उत्पन्न हो गया अर्थात् संयमवृत्ति से उसका मन भग्न हो गया। इधर मती राजीमती ने भी दृष्टि फैलने से उसको देखा । कारण यह है कि अन्धकार में पहले प्रवेश करते समय कुछ दिखाई नहीं देता और जब दृष्टि स्थिर हो जाती है, तब कुछ कुछ दिखाई देने लगता है । अतः गुफा में प्रवेश करते समय तो उसने रथनेमि को नहीं देखा परन्तु कुछ समय के बाद उसको वह दिखाई पड़ा ।
राजीमती के रूप लावण्य को देखकर संयम से विचलित हुए रथनेमि को देखने से राजीमती एकदम भयभीत हो उठी। अब इसी सम्बन्ध में कहते हैं
भीया य सा तहिं दट्टु, एगंते संजयं तयं । बाहाहिं काउं संगुप्फ, वेवमाणी निसीयई ॥ ३५ ॥