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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ द्वाविंशाध्ययनम्
इस प्रकार बहुत-सी सहचरियों को दीक्षा देकर और उनको साथ लेकर, रैवतगिरि पर विराजे हुए भगवान् नेमिनाथ को वन्दना करने के लिए जब राजीमती ने प्रस्थान किया तो मार्ग में उनके साथ जो घटना हुई, अब उसका वर्णन करते हैंगिरि रेवतयं जन्ती, वासेणोल्ला उ अन्तरा । वासंते अंधयारम्मि, अंतो लयणस्स सा ठिया ॥३३॥ गिरि रैवतकं यान्ती, वर्षेणाऱ्या त्वन्तरा। वर्षत्यन्धकारे , अन्तरा लयनस्य सा स्थिता ॥३३॥
पदार्थान्वयः रेवतयं-रैवत गिरि-पर्वत को जन्ती-जाती हुई अन्तरा-बीच में आधे मार्ग में वासेणोल्ला-वर्षा से भीग गई उ-फिर वासंते-वर्षा के होते हुए अंधयारम्मि-अन्धकार में लयणस्स-लयन, गुफा के अंतो-भीतर सा-राजीमती ठिया-ठहर गई।
. मूलार्थ-वतगिरि पर जाती हुई वह वर्षा से भीग गई और वर्षा के होते हुए ही वह एक अन्धकारमयी गुफा में जाकर ठहर गई।
टीका-जिस समय अपने सारे आर्यापरिवार को साथ लेकर राजीमती रैवतगिरि को प्रस्थित हुई, अनुमान आधे मार्ग पर पहुँचते ही घनघोर वर्षा होने लगी। उससे राजीमती के सारे वस्त्र भीग गये। तब वह वर्षा के होते ही समीपवर्ती पर्वत की एक गुफा में जाकर ठहर गई, जहाँ पर पूर्ण अन्धकार था। साधु और साध्वी के लिए शास्त्र का ऐसा आदेश है कि जिस समय वर्षा पड़ रही हो, उस समय वे विहार न करें किन्तु किसी आश्रय में—जहाँ पर वर्षा से बचाव हो सके-ठहर जायें । इसलिए राजीमती ने समीपवर्तिनी एक गुफा में आश्रय लिया। प्रस्तुत गाथा में प्रयुक्त हुए 'लयण' शब्द का प्रसिद्ध अर्थ पर्वत की गुफा या कन्दरा है, जो कि एकान्तप्रिय आत्मार्थी जीवों को धर्मध्यानपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए उपयोग में आती है और आती थीं । वह भी कृत्रिम अर्थात् बनाई हुई अथवा स्वभावतः बनी हुई होती हैं । जिस गुफा में राजीमती जाकर ठहरी, वह बड़ी विशाल गुफा थी और उसका निर्माण भी विविक्तस्थानसेवी साधु-महात्माओं के लिए था। यह सब अनुमानतः सिद्ध होता है।