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द्वाविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । . [६७१
उज्जाणं संपत्तो, ओइण्णो उत्तमाउ सीयाओ।। साहस्सीए परिखुडो, अह निक्खमई उ चित्ताहिं ॥२३॥ उद्यानं सम्प्राप्तः, अवतीर्ण उत्तमायाः शिविकायाः। सहस्रेण परिवृतः, अथ निष्कामति तु चित्रानक्षत्रे ॥२३॥
पदार्थान्वयः-उजाणं-उद्यान में संपत्तो-प्राप्त हुए उत्तमाउ-उत्तम सीयाओशिविका से ओइएणो-उतरे साहस्सीए-सहस्रों पुरुषों से परिवुडो-घिरे हुए अहतब चित्ताहि-चित्रा नक्षत्र में निक्खमई-श्रमणवृत्ति ग्रहण कर ली उ-वितर्क में है।
मूलार्थ उद्यान में पहुँचकर और सर्वोत्तम शिविका से उतरकर सहस्रों पुरुषों से घिरे हुए भगवान् अरिष्टनेमि ने चित्रानक्षत्र के योग में श्रमणवृत्ति को ग्रहण किया अर्थात् दीक्षित हो गये।
टीका-सहस्रों स्त्री-पुरुषों से घिरे हुए, बड़े समारोह के साथ उज्जयन्त पर्वत पर पहुँचने के अनन्तर भगवान् उक्त पालकी पर से उतरे और चित्रानक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग आने पर उन्होंने श्रमणवृत्ति को धारण कर लिया अर्थात् प्रधान कुल में उत्पन्न हुए एक सहस्र पुरुषों को साथ लेकर सिद्धों को नमस्कार करके श्रमण धर्म में प्रविष्ट हो गये । तात्पर्य यह है कि उनके साथ एक हजार अन्य पुरुष भी दीक्षित हुए । भगवान् की यह दीक्षा उज्जयन्त पर्वत के समीपवर्ती सहस्राम्रवन में हुई । वहाँ पर ही उन्होंने सहस्र पुरुषों के साथ सर्वसावद्यवृत्ति के त्याग की प्रतिज्ञा करते हुए सामयिक चारित्र को ग्रहण किया। ___ अब उनके केशलुंचन के विषय में कहते हैंअह से सुगन्धगन्धिए, तुरियं मउअकुंचिए । सयमेव लुचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥२४॥ अथ स सुगन्धगन्धिकान्, त्वरितं मृदुककुञ्चितान् । ... खयमेव लुञ्चति केशान् , पञ्चमुष्टिभिः समाहितः ॥२४॥
पदार्थान्वयः-अह-अथ से-वह अरिष्टनेमि भगवान् सयमेव-स्वयं ही