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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ द्वाविंशाध्ययनम्
विद्युत् नाम अनि का भी है तथा विद्यत् नाम बिजली और सौदामिनी नाम प्रधानमणि इस प्रकार ऊपर के तीनों ही अर्थ संगत हो जाते हैं । तथाच वृत्तिकार : - ' तथाच ' 'विज्जुसोयामणिप्पभा' त्ति — विशेषेण द्योतते दीप्यते इति विद्युत् सा चासौ सौदामिनी च विद्युत्सौदामिनी । अथवा — — विद्युदनिः, सौदामिनी च तडित् । अन्ये तु सौदामिनी प्रधानमणिरित्याहुः ।
राजीमती की याचना करने पर उसके पिता उग्रसेन ने जो कुछ कहा, अब उसके विषय में कहते हैं
महड़ियं ।
अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं इहागच्छउ कुमरो, जा से कन्नं ददामि हं ॥८॥ महर्द्धिकम् ।
अथाह
इहागच्छतु
कुमारः, येन तस्मै कन्यां ददाम्यहम् ॥८॥
पदार्थान्वयः — अह - अथ तीसे- उस राजीमती का. जणओ - पिता आह- कहने लगा वासुदेवं - वासुदेव महड्डियं - महर्द्धिक के प्रति इह - यहाँ —— मेरे घर में आगच्छउ - आवे कुमरो- कुमार जा - जिस करके से- उसको अहं - मैं कन्नं-कन्या ददामि - दूँ ।
जनकस्तस्याः, वासुदेवं
मूलार्थ - तदनन्तर राजीमती के पिता ने समृद्धि वाले वासुदेव से कहा कि यदि वह कुमार मेरे घर में आ जाय तो मैं उसको अपनी कन्या दे दूँगा । टीका – जिस समय कृष्ण वासुदेव ने श्रीनेमिनाथ के साथ राजीमती का विवाह कर देने के लिए उग्रसेन से कहा तो उग्रसेन ने उनके विचार से सहमत होते उनसे कहा कि यदि मिकुमार मेरे घर में विवाहोचित महोत्सव के साथ आवे तो मैं विधिपूर्वक उसको कन्या देने के लिए सर्व प्रकार से प्रस्तुत हूँ । इस कथन से यह प्रतीत होता है कि बहुत से लोग, वासुदेव की आज्ञानुसार उनको यों ही कन्या दे जाया करते होंगे। तभी तो महाराजा उग्रसेन ने उनके समक्ष विवाह महोत्सवपूर्वक कन्या देने की इच्छा प्रकट की । 'अथ' शब्द उपन्यासादि अर्थ में भी आता है। तथा 'जा – येन, से– तस्मै' इनमें सुप व्यत्यय किया हुआ है 1
उग्रसेन के उक्त वचन को स्वीकार कर लेने के अनन्तर विवाह का समय