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________________ द्वाविंशाध्ययनम् ] हिन्दी भाषाटीकासहितम् । [ ६५६ निश्चित हो गया और तदनुसार विवाहोचित सामग्री का सम्पादन किया गया तथा सर्वोषधियुक्त जलादि से मांगलिक स्नान कराकर श्रीनेमिकुमार को शृंगारित हस्ती पर आरूढ कराकर चतुरंगिणी सेना के साथ बड़े आडम्बर से कुमारी राजीमती को विवाह कर लाने के लिए प्रस्थान किया गया। अब इसी विषय का सविस्तर वर्णन किया जाता है सव्वोसहीहिं हविओ, कयकोऊयमंगलो 1 दिव्वजुयलपरिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ ॥९॥ सर्वोषधिभिः स्नपितः, कृतकौतुकमङ्गलः दिव्ययुगल परिहितः , आभरणैर्विभूषितः 11811 पदार्थान्वयः—सव्वोसहीहिं—सर्वोषधियों से हविओ - स्नान कराया गया कयको मंगलो- किया गया कौतुकमंगल जिसका दिव्व-प्रधान जुयल - वस्त्र परिहिओ—पहन लिये आभरणेहिं - आभरणों से विभूसिओ - विभूषित हुआ । मूलार्थ — सर्वोषधिमिश्रित जल से स्नान कराया गया, कौतुकमंगल किया गया और दिव्य वस्त्र पहनाये गये तथा आभूषणों से विभूषित किया गया । टीका - जब उग्रसेन राजा ने अपनी प्रिय पुत्री का, नेमकुमार से विवाह कर देना स्वीकार कर लिया और वासुदेव ने उसके अनुसार सारा प्रबन्ध कर लिया, तब विवाह का समय समीप आने पर श्रीनेमिकुमार को, जया विजया आदि ओषधियों से मिले हुए जल के द्वारा स्नान कराया गया, कौतुक —— मुशल आदि से ललाट का स्पर्श और मंगल – दधि अक्षत दूर्वा तथा चन्दनादि के द्वारा — विधान किया, फिर प्रधान — बहुमूल्य वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत किया गया। तात्पर्य यह है कि उस समय विवाहसम्बन्धी जो भी प्रथा थी तथा कुलमर्यादा के अनुसार जो कुछ भी कृत्य था, वह सब आनन्दपूर्वक मनाया गया । तथा-' - 'दिव्वजुयलपरिहियो' इस वाक्य में प्राकृत के कारण परनिपात किया गया है। वास्तव में तो 'परिहियदिव्वजुयलो —— परिहितदिव्य युगल : ' ऐसा होना चाहिए था । सर्वोषधिस्नान और वस्त्राभरणों से अलंकृत किये जाने के बाद जो कुछ हुआ, अब उसका वर्णन करते हैं
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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