________________
६०६ ]
M
उत्तराध्ययनसूत्रम्
[चतुर्दशाध्ययनम् पदार्थान्वयः-जहा-जैसे वयं-हम धम्म-धर्म को अजाणमाणा-न जानते हुए मोहा-अज्ञानता के वश से पुरा-पहले पावं कम्म-पापकर्म अकासि-करते हुए ओरुब्भमाणा-रोके हुए परिरक्खयंता-सर्व प्रकार से रक्षा किये हुए तं-वह पापकर्म नेव-नहीं भुजोवि-फिर भी समायरामो-ग्रहण करेंगे।
मूलार्थ-जैसे हम धर्म को न जानते हुए अज्ञानता के वश से पहले पापकर्म करते थे और आपके रोके हुए तथा सर्व प्रकार से सुरक्षित किये हुए घर से बाहर भी नहीं निकलते थे, परन्तु अब हम उस पापकर्म का सेवन नहीं करेंगे।
टीका-दोनों कुमार कहते हैं कि पिता जी ! जिस प्रकार धर्म को न जानते हुए हम ने पहले पापकर्मों का उपार्जन किया है तथा आपके रोकने पर हम घर से बाहर भी नहीं निकल सकते थे परन्तु अब हम से यह न होगा क्योंकि अब हम ने धर्म और अधर्म को भली प्रकार समझ लिया है । तथा धर्म एवं विषयभोगों के परिणाम में जो अन्तर है, उसको भी हम ने समझ लिया है। अतः इन विषयभोगों के प्रलोभन में हम अब नहीं आ सकते । वास्तव में विचार का फल यही है कि वस्तुतत्त्व को समझ कर उसके अनुकूल आचरण करना, जिससे कि आत्मा में इच्छित विकास की उपलब्धि हो।
अब फिर इसी विषय में कहते हैंअब्भाहयम्मि लोगम्मि, सव्वओ परिवारिए। अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न रइं लभे ॥२१॥ अभ्याहते लोके, सर्वतः परिवारिते। अमोघाभिः पतन्तीभिः, गृहे न रति लभावहे ॥२१॥
पदार्थान्वयः-अब्भाहयंमि-पीड़ित हुए लोगम्मि-लोक में सव्वओ-सर्व दिशाओं में परिवारिए-परिवृत हुए अमोहाहिं-अमोघ पडंतीहिं-शस्त्रधाराओं के पड़ने से गिहंसि-घर में रई-रति-आनन्द को न लमे-हम नहीं पाते ।
___ मूलार्थ-अमोघशस्त्रधारा के पड़ने से सर्व दिशाओं में पीड़ित हुए इस लोक में अब हम घर में रहकर आनन्द को प्राप्त नहीं कर सकते ।