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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[द्वाविंशाध्ययनम्
चिह्न विद्यमान थे। एवं उनके शरीर में विमान, भवन, चन्द्र, सूर्य और मेदिनी आदि के शुभ चिह्न मौजूद थे। गौतम उनका गोत्र था और उनके शरीर की अतसी पुष्प के समान नीले वर्ण की परम सुन्दर कांति थी। यहाँ पर प्राकृत के कारण लक्षण शब्द का पूर्व निपात हुआ है। अथवा—'लक्षणोपलक्षितो वा स्वरो लक्षणस्वरः' यह मध्यमपदलोपी समास जानना । एक हजार आठ लक्षणों के नाम, प्रश्नव्याकरणसूत्र के अंगुष्ठप्रश्न नामक अध्ययन से जान लेने । किसी २ प्रति में तो 'वंजणस्सरसंजुओ' ऐसा पाठ देखने में आता है। यहाँ पर 'वंजण' का अर्थ तिलक आदि करना।
अब उनके शरीर के संहनन का वर्णन करते हैंवजरिसहसंघयणो, समचउरंसो झसोयरो। तस्स राईमई कन्नं, भलं जायइ केसवो ॥६॥ वज्रर्षभसंहननः , समचतुरस्रो झषोदरः। तस्य राजीमती कन्यां, भायां याचते. केशवः ॥६॥
पदार्थान्वयः-बजरिसह-वन ऋषम नाराच संघयणो-संहनन समचउरंसो-समचतुरस्रसंस्थान और झसोयरो-मत्स्य के समान उदर तस्स-उसके लिए राईमई-राजीमती कन्नं-कन्या को भज-भार्या रूप में केसवो-केशव जायइयाचना करता है।
मूलाई-वज ऋषभ नाराच संहनन के धरने वाले, समचतुरस्रसंस्थान से युक्त उस अरिष्टनेमि कुमार के लिए राजीमती कन्या को भार्या रूप में केशव याचना करता है।
टीका-इस गाथा में अरिष्टनेमि कुमार के शरीर का संहनन और बाह्याकृति का वर्णन किया गया है। जैसे कि उनका वज ऋषभ नाराचसंहनन था अर्थात्शरीर में रहने वाली अस्थियों का बन्धन इस प्रकार था कि वन, कीलिका, ऋषभ, पट्ट और नाराच दोनों ओर मर्कटबन्धन, इस तरह पर शरीर के भीतर अस्थियों के बन्धन पड़े हुए थे । इसी को वन ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं । जिनके अंस और जानु बैठे हुए सम प्रतीत हों, उसी का नाम समचतुरस्रसंस्थान है ।