SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वाविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६५५ अरिष्टनेमि त्ति-इस नाम से प्रसिद्ध लोगनाहे-लोक का नाथ और दमीसरे-इन्द्रियों का दमन करने वाला था। ___ मूलार्थ—समुद्रविजय की शिवा नाम्नी भार्या थी और उसका पुत्र महायशस्वी, परम जितेन्द्रिय और त्रिलोकी का नाथ भगवान् अरिष्टनेमिनेमिनाथ हुआ। टीका-प्रस्तुत गाथा में बाईसवें तीर्थंकर के जन्म और नाम का वर्णन है। उनके पिता का नाम समुद्रविजय और माता का नाम शिवा देवी एवं उनका नाम अरिष्टनेमि था । वे जन्म से लेकर पूर्ण ब्रह्मचारी रहे और इसी हेतु से वे दमीश्वर और लोकनाथ कहलाये तथा संसार में उनका महान् यश फैला । यद्यपि भावी नैगमनय से उनको लोकनाथ और दमीश्वर कहा गया है परन्तु जो तीर्थंकर होते हैं, वे तो बाल्यावस्था से ही विशिष्ट शक्तियों के धारण करने वाले तथा मन पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं । भगवान् शब्द यहाँ पर प्रशंसार्थ में ग्रहण किया गया है। 'तीसे पुत्तो' शब्द से औरस पुत्र का ग्रहण है। ___ अब भगवान् नेमिनाथ के विषय में कहते हैंसोऽरिद्वनेमिनामो अ, लक्खणस्सरसंजुओ । अटुसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥५॥ सोऽरिष्टनेमिनामा च, खरलक्षणसंयुतः । अष्टसहस्रलक्षणधरः , गौतमः कालकच्छविः ॥५॥ पदार्थान्वयः-सो-वह अरिटुनेमि-अरिष्टनेमि नामो-नाम वाला कुमार अ-पुनः लक्खणस्सर-लक्षण और स्वर से संजुओ-संयुक्त था और अद्वसहस्सलक्खणधरो-एक हजार आठ लक्षणों को धारण करने वाला था गोयमोगौतमगोत्रीय और कालगच्छवी-कृष्ण कांति वाला था। . - मूलार्थ-वह अरिष्टनेमि नामा कुमार, स्वर लक्षणों से युक्त और एक हजार आठ लक्षणों का धारक था तथा गौतमगोत्र और कृष्ण कांति वाला था । टीका-वह अरिष्टनेमिकुमार, स्वस्तिकादि लक्षणों से लक्षित और मधुर, गम्भीर आदि स्वरों से युक्त था । तात्पर्य यह है कि उसमें महापुरुषोचित स्वर और
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy