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________________ १५४ ] • उत्तराध्ययनसूत्रम्- [द्वाविंशाध्ययनम् के वहाँ और भी अनेक स्त्रियाँ विद्यमान थीं परन्तु यहाँ पर उनका कोई सम्बन्ध न होने से उल्लेख नहीं किया गया। इन दो का प्रयोजन होने से उल्लेख किया गया है। बलदेव और वासुदेव की माता होने से ये दोनों ही संसार में विख्यात हैं। ____ अब समुद्रविजय के प्रसंग का वर्णन करते हैंसोरियपुरंमि नयरे, आसि राया महिडिए । समुद्दविजये नाम, रायलक्खणसंजुए ॥३॥ सौर्यपुरे नगरे, आसीद् राजा महर्द्धिकः । समुद्रविजयो नाम, राजलक्षणसंयुतः ॥३॥ पदार्थान्वयः-सोरिय-सौर्य पुरंमि-पुर नयरे-नगर में आसि-था रायाराजा महिड्डिए-महती समृद्धि वाला समुद्दविजये-समुद्रविजय नाम-नाम से प्रसिद्ध रायलक्खण-राजलक्षणों से संजुए-संयुक्त। मूलार्थ–सौर्यपुर नगर में राजलक्षण संयुक्त और महती समृद्धि वाला समुद्रविजय नाम का राजा था। टीका—एक तो वसुदेव और समुद्रविजय इन दोनों भाइयों में परस्पर बड़ा स्नेह था और दूसरे आगे की गाथाओं में इन दोनों का ही वर्णन आयगा; इसलिए इन दोनों का यहाँ पर उल्लेख किया गया है। यद्यपि प्रस्तुत अध्ययन का नाम रहनेमीय अध्ययन है तथापि उसके वर्णन में इनका उल्लेख करना परम आवश्यक है। ____ अब इनकी पत्नी के विषय में कहते हैंतस्स भजा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो । भगवं अरिडुनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥४॥ तस्य भार्या शिवा नाम्नी, तस्याः पुत्रो महायशाः । भगवानरिष्टनेमिरिति , लोकनाथो दमीश्वरः ॥४॥ पदार्थान्वयः–तस्स-समुद्रविजय की भजा-भार्या सिवा नाम-शिवा नाम वाली थी तीसे-उसका पुत्तो-पुत्र महायसो-महायशस्वी भगवं-भगवान् अरिट्टनेमि
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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