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द्वाविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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मूलार्थ - सौर्यपुर नगर में वसुदेव नामा महती समृद्धि वाला राजा राज्य करता था, जो कि राजा के लक्षणों से युक्त था ।
टीका - इस गाथा में राजा और उसके लक्षणों का निर्देश करने से सामुद्रिक शास्त्र की सिद्धि होती है। जैसे—चक्र, स्वस्तिक, अंकुश, छत्र, चमर, हस्ती, अश्व, सूर्य और चन्द्र इत्यादि लक्षणों से जिसका शरीर युक्त हो अर्थात् जिसके शरीर में सामुद्रिकशास्त्रविहित उक्त चिह्न विद्यमान हों, वह राजा होता है । निश्चय नय के अनुसार तो जिसके भाग्य में राज्य होता है, वही राजा बनता है परन्तु व्यवहार नय को लेकर तो . जिसके शरीर में उक्त चिह्नों में से कितने एक चिह्न दिखाई देवें तो उसमें राज्यपद की योग्यता की कल्पना की जाती है । यदि वास्तव में विचार किया जाय तो उक्त लक्षण भी उसी में होते हैं, जिसके भाग्य में राज्य - सम्पत्ति का अधिकार हो, अन्य के नहीं । तथा वह नाम का राजा नहीं था किन्तु अत्यन्त ऋद्धि वाला था ।
अब राजा की स्त्रियों के विषय में कहते हैं—
तस्स भज्जा दुवे आसी, रोहिणी देवई तहा । तासिंदोहंपि दो पुत्ता, इट्ठा रामकेसवा ॥२॥ तस्य भार्ये द्वे आस्ताम्, रोहिणी देवकी तथा । तयोर्द्वयोरपि द्वौ पुत्रौ, इष्टो रामकेश ॥२॥
पदार्थान्वयः—तस्स—उस— वसुदेव राजा के दुवे-दो भज्जा - भार्याएँ आसीथीं रोहिणी - रोहिणी तहा - तथा देवई - देवकी तासिं-उन दोहंपि- दोनों के ही दोदो पुत्ता-पुत्र हुए इट्ठा - वल्लभ राम- बलभद्र और केसवा - केशव ।
मूलार्थ - वसुदेव राजा की दो भार्याएँ थीं - एक रोहिणी, दूसरी देवकी । उन दोनों के क्रम से राम और केशव ये दो पुत्र हुए, जो कि बड़े प्रिय थे ।
टीका - वसुदेव की रोहिणी और देवकी ये दो स्त्रियाँ थीं । उनके क्रम से राम- बलभद्र और केशव – कृष्ण ये दो पुत्र उत्पन्न हुए। ये दोनों ही जनता के अत्यन्त प्रिय थे और इनका आपस में भी अत्यन्त प्रेम था । यद्यपि महाराजा वसुदेव