SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८] उत्तराध्ययनसूत्रम् [एकविंशाध्ययनम् प्रकार से वह अपने धर्मसम्बन्धी कार्यों को यथाविधि व्यवहार में लाता हुआ देश में विचरण करता है। जैसे कि-पादोन पौरुषी आदि में प्रतिलेखना, ठीक समय पर प्रतिक्रमण तथा शास्त्रस्वाध्याय और भिक्षाचरी आदि क्रियाओं का सम्पादन करता हुआ अप्रतिबद्ध विहारी होकर देश में विचरने लगा । एवं अपने आत्मा की शक्ति के अनुसार उसके बलाबल का विचार करके जिस प्रकार संयम के योगों की हानि न हो, उसी प्रकार से धर्मसम्बन्धी क्रिया में वे प्रवृत्त हो गये । तथा किसी भयानक शब्द को सुनकर जैसे सिंह त्रास को प्राप्त नहीं होता, तद्वत् निर्भय होकर दृढतापूर्वक विचरने लगा । यदि किसी ने उसके प्रति दुःखप्रद शब्द का प्रयोग भी कर दिया हो तो उसके प्रति भी उसने कभी असभ्य शब्द का प्रयोग नहीं किया । यह शास्त्रानुमोदित साधुचर्या है, जिसका ऊपर दिग्दर्शन किया गया है। इसी साधुवृत्ति को धारण करता हुआ वह समुद्रपाल मुनि देश में विचरता है, यह प्रस्तुत काव्य का भाव है । मुनिधर्म का विवेचन करते हुए शास्त्रकारों ने जिन नियमों का त्यागशील मुनि के लिए विधान किया है, उनका यथाविधि पालन करना ही मुनिवृत्ति की सार्थकता है। संयमवृत्ति को ग्रहण करने के अनन्तर संयमी पुरुष का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह शास्त्रविहित क्रियाओं में कभी प्रमाद न करे अर्थात् अपनी प्रत्येक क्रिया को नियत समय में करे तथा अपने आत्मा की न्यूनाधिक शक्ति का विचार करके उत्कृष्ट अभिग्रहादि में प्रवेश करे, और सिंह की भाँति सदा निर्भय रहे । एवं किसी के द्वारा प्रयुक्त किये गये कटु अथवा असभ्य शब्दों के प्रयोग में भी उद्वेग को प्राप्त न हो तथा असभ्य भाषण न करे । इसी प्रकार की विशुद्ध प्रवृत्ति से संयमी पुरुष की आत्मसमाधि और धर्मभावना में विशेष प्रगति होती है। अब फिर इसी विषय में कहते हैंउवेहमाणो उ परिव्वएज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खएला। नसव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जा, · न यावि पूर्य गरहं च संजए ॥१५॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy