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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[विंशतितमाध्ययनम्
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___ पदार्थान्वयः-तंसि-तुम नाहो-नाथ हो अणाहाण-अनाथों के संजयाहे संयत ! सव्वभूयाण-सर्व जीवों के महाभाग !-हे महाभाग ! ते-तुझे खामेमिक्षमापना करता हूँ इच्छामि-चाहता हूँ आपसे अणुसासिउं-आत्मा को शिक्षित करना ।
मूलार्थ हे भगवन् ! आप ही अनाथों के नाथ हैं । हे संयत ! आप सर्वजीवों के नाथ हैं । हे महाभाग ! मैं आप से घमा की याचना करता हूँ और अपने आत्मा को आपके द्वारा शिक्षित बनाने की इच्छा करता हूँ।
टीका-महाराजा श्रेणिक कहते हैं कि हे महाराज ! आप अनाथों के नाथ हैं, अनाथों को सनाथ करने वाले हैं, अतएव सर्व जीवों के नाथ हैं। हे महाभाग ! मुझसे यदि आपका कोई अपराध हो गया हो तो आप उसे क्षमा करें । हे संयत ! मैं अपने आत्मा को आपके द्वारा शासित-शिक्षित किये जाने की इच्छा रखता हूँ, अर्थात् आपके शासन में रहकर आत्मशुद्धि की अभिलाषा रखता हूँ । प्रस्तुत गाथा में अनाथी मुनि की स्तुति, अपराध के क्षमा करने की याचना और उनकी शिक्षाओं को धारण करने की अभिलाषा-इन तीन बातों का दिग्दर्शन कराया गया है। इससे राजा की मोक्षविषयिणी इच्छा का उद्भावन किया गया है।
____ अब क्षमापना के विषय में कहते हैंपुच्छिऊण मए तुम्भं, भाणविग्यो य जो कओ। निमन्तिया य भोगेहिं, तं सव्वं मरिसेहि मे ॥५७॥ पृष्ट्वा मया युष्माकं, ध्यानविघातस्तु यः कृतः । निमन्त्रिताश्च भोगैः, तत् सर्वं मर्षयन्तु मे ॥५७॥
पदार्थान्वयः-मए-मैंने पुच्छिऊण-पूछकर तुम्भ-आपके झाण-ध्यान में विग्यो-विघ्न जो-जो कओ-किया है य-और भोगेहि-भोगों के द्वारा निमन्तियानिमंत्रित किया है त-वह सव्वं-सब मे-मेरा अपराध मरिसेहि-आप क्षमा करें ।
मूलार्थ-मैंने पूछकर आपके ध्यान में विघ्न उपस्थित किया और भोगों के लिए आपको निमंत्रित किया, यह सब मेरा अपराध आप वमा करें। आप चमा करने योग्य हैं।