________________
M
विंशतितमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । प्रतिज्ञा का पालन (२) साधुवृत्ति के लक्षण और (३) माता, पिता आदि से . पूछकर दीक्षित होना । इसलिए प्रस्तुत गाथा में स्फुटतया प्रतीत होने वाली इन तीनों बातों पर वर्तमान समय के मुमुक्षु जनों को अवश्य विचार करना चाहिए । तथा गाथा में आये हुए 'कल्ल' शब्द के 'नीरोगता' और 'आगामी दिन' ये दो अर्थ होते , हैं, और दोनों ही अर्थ यहाँ पर उपयुक्त हो सकते हैं।
तदनन्तर क्या हुआ ? क्या बना ? अब इसी विषय में कहते हैंतो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य। सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य॥३५॥ ततोऽहं नाथो जातः, आत्मनश्च परस्य च । सर्वेषां चैव भूतानां, त्रसानां स्थावराणां च ॥३५॥ .
पदार्थान्वयः-तो-तदनन्तर अहं-मैं नाहो-नाथ जाओ-हो गया, अप्पणो-अपना य-और परस्स-दूसरे का य–तथा सव्वेसिं-सर्व भृयाणं-जीवों का च-फिर एव-निश्चय ही तसाण-त्रसों का य-और थावराण-स्थावरों का।
मूलार्थ हे राजन् ! तदनन्तर मैं अपना या दूसरे का तथा सब जीवों का-प्रसों का और स्थावरों का नाथ हो गया। .. टीका-राजा के प्रति जिस तत्त्व को समझाने के लिए मुनि ने प्रस्तावना
रूप से अपनी पूर्वदशा का सविस्तर वर्णन किया और राजा के जिस प्रश्न का समाधान करने के लिए यह भूमिका बाँधी गई, प्रस्तुत गाथा में उसी का रहस्यपूर्ण स्पष्टीकरण किया गया है । मुनि कहते हैं कि हे राजन् ! अपनी मानसिक प्रतिज्ञा के अनुसार प्रातःकाल होते ही अनगार वृत्ति को धारण करने के अनन्तर, अब मैं अपना तथा दूसरे का एवं त्रस और स्थावर, सभी जीवों का नाथ बन गया हूँ। तात्पर्य यह है कि 'नाथ' शब्द का अर्थ स्वामी वा रक्षक होता है । इसलिए दीक्षाग्रहण करने के बाद अठारह प्रकार के पापों से निवृत्त हो जाने के कारण तो मैं अपना नाथ बना और पर जीवों की रक्षा करने से तथा उनको सम्यक्त्व का लाभ देने एवं योगक्षेम करने से परजीवों का भी स्वामी-रक्षक बन गया । इस प्रकार अपना
BF