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विंशतितमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[८८ प्रस्तुत गाथा में ध्वनिरूप से कुलीन स्त्री के गुणों का भी वर्णन किया गया है अर्थात्-जो पति के दुःख से दुःखी, सुख से सुखी और सदा उसकी आज्ञा में रहने वाली सच्चरित्र स्त्री, पतिव्रता कहलाती है। अब इसी बात का अर्थात् अपनी स्त्री के विशिष्ट गुणों का वर्णन करते हुए मुनि फिर कहते हैं कि
अन्नं पाणं च ण्हाणं च, गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमनायं वा, साबाला नेव भुंजई ॥२९॥ अन्नं पानं च स्नानं च, गन्धमाल्यविलेपनम् । मया ज्ञातमज्ञातं वा, सा बाला नैव भुंक्ते ॥२९॥
___ पदार्थान्वयः-अन्न-अन्न च-और पाणं-पानी च-तथा पहाणं-स्नान गन्धसुगन्धित द्रव्य मल्ल-माला आदि विलेवणं विलेपन आदि का मए-मेरे नायम्-जानते हुए वा-अथवा अनायं-न जानते हुए सा-वह बाला-अभिनवयौवना नेव भुंजईउपभोग नहीं करती थी।
__ मूलार्थ-अब, पानी, खान, गन्ध, माला और विलेपन आदि का, मेरे जानते हुए अथवा न जानते हुए वह बाला-अभिनवयौवना-सेवन नहीं करती थी।
टीका-अपनी स्त्री की पतिपरायणता और विशिष्ट सहानुभूति का वर्णन करते हुए मुनि कहते हैं कि हे राजन् ! मेरी अभिनवयौवना स्त्री मेरे दुःख से अधिक व्याकुलित हुई अन्न, जल और स्नान का करना तथा चन्दनादि सुगन्धिद्रव्यों का शरीर पर विलेपन करना, एवं पुष्पमाला आदि का पहरना इन सब वस्तुओं का परित्याग कर चुकी थी। तात्पर्य यह है कि मेरे स्नेह के कारण उसने शृंगारपोषक द्रव्यों का परित्याग करने के अतिरिक्त शरीर को पुष्ट करने वाले आहार का भी परित्याग कर दिया । क्योंकि मेरी व्यथा के कारण उसको इन सब पदार्थों से उदासीनता हो गई थी तथा अन्न-जल में भी उसकी रुचि नहीं रही थी।
फिर कहते हैं