________________
विंशतितमाध्ययनम् ]
हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
[३
के प्रहार से होती है। तात्पर्य यह है कि जैसे वज्रप्रहारजन्य वेदना अत्यन्त घोर और चिरकाल तक रहने वाली होती है, उसी प्रकार दाहज्वर के प्रभाव से मेरे शरीर में उत्पन्न होने वाली वेदना भी अति तीव्र थी । इस भयंकर वेदना के कारण मुझे भूख और प्यास की भी इच्छा नहीं रही, किन्तु निरन्तर वेदना का ही अनुभव करता रहा । यहाँ पर वज्र का दृष्टान्त इसलिए दिया गया है कि मनुष्यों के प्रहार किये गये शस्त्र द्वारा जो वेदना उत्पन्न होती है, वह प्रायः मन्द और शीघ्र शान्त हो जाती है । परन्तु देवों के शस्त्रों का जो प्रहार है, उससे उत्पन्न होने वाली वेदना तीव्र होती है और उसका शमन भी चिरकाल में होता है । अतः उक्त वेदना की भयंकरता और चिरकाल के स्थायित्व का प्रतिपादन करना ही वज्र के दृष्टान्त का प्रयोजन है ।
क्या उस नगरी में कोई योग्य वैद्य — चिकित्सक नहीं था ? अथवा आपने के उत्तर उक्त वेदना के शमनार्थ कोई ओषधि ही नहीं खाई ? राजा के इस प्रश्न उक्त मुनिराज ने जो कुछ कहा, अब उसका वर्णन करते हैं
में
उवट्टिया मे आयरिया, विखामन्ततिगिच्छगा । अबीया सत्थकुसला, मन्तमूलविसारया उपस्थिता ममाचार्याः, विद्यामन्त्रचिकित्सकाः । अद्वितीयाः शास्त्रकुशलाः, मन्त्रमूलविशारदाः
॥२२॥
पदार्थान्वयः — उवट्टिआ - उपस्थित हुए मे-मेरे लिए आयरिया - आचार्य विजा-विद्या मन्त-मंत्र के द्वारा चिगिच्छ्गा - चिकित्सा करने वाले अबीयाअद्वितीय सत्थं—शास्त्रों—शस्त्रों में कुसला - कुशल मन्त-मंत्र मूल - ओषधि आदि में विसारया - विशारद ।
॥२२॥
मूलार्थ - मेरी चिकित्सा करने के लिए वे आचार्य उपस्थित थे, जो विद्या और मंत्र के द्वारा चिकित्सा करने में अद्वितीय थे, शस्त्र और शास्त्रक्रिया में अति निपुण्य तथा मंत्र और मूल ओषधि आदि के प्रयोग में अत्यन्त कुशल थे । टीका - महाराजा श्रेणिक के प्रश्न का उत्तर देते हुए मुनिराज कहते हैं कि मेरी चिकित्सा के लिए सामान्य वैद्य तो वैद्यों के भी महान् आचार्य उपस्थित
क्या,