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प्रभूतरत्वो विहारयात्रया निर्यातः, मण्डितकुक्षौ
राजा, श्रेणिको
उत्तराध्ययनसूत्रम्
मगधाधिपः । चैत्ये ॥२॥
पदार्थान्वयः — पभूय-प्रभूत रयणो-रत्नों वाला राया - राजा सेणिओ-श्रेणिक मगहाहिवो -मगध का अधिपति विहारजत्तं -विहारयात्रा के लिए निजाओ-निकला मण्डिकुच्छिसि - मंडिक कुक्षि नाम वाले चेइए- चैत्य में I
[ विंशतितमाध्ययनम्
मूलार्थ — प्रभूत रत्नों का स्वामी और मगध देश का राजा श्रेणिक, मंडिक कुक्षि नाम के चैत्य में विहारयात्रा के लिए गया ।
टीका - इस गाथा में मगध के अधिपति महाराजा श्रेणिक की प्रभूत रत्नसामग्री और उसकी विहारयात्रा का उल्लेख किया गया है। महाराजा श्रेणिक के पास अनेक बहुमूल्य रत्न विद्यमान थे। वह मगध देश का अधिपति था । विहारयात्रा के लिए वह मंडिक कुक्षि नामक चैत्य-उद्यान में गया । यहाँ पर आये हुए चैत्य शब्द का अर्थ आराम या उद्यान ही है, क्योंकि सूत्रों में प्राय: इसी अर्थ में चैत्य शब्द प्रयुक्त हुआ देखा जाता है। क्रीड़ा के लिए जो गमन है, उसको विहारयात्रा कहते हैं । इसी प्रकार गिरियात्रा, विदेशयात्रा और समुद्रयात्रा' आदि शब्दों की योजना कर लेनी चाहिए । 'विहारजत्तं' यह तृतीया के अर्थ में द्वितीया है। अब उस चैत्य — उद्यान का वर्णन करते हैं
नाणादुमलयाइन्नं, नाणापक्खिनिसेवियं नाणाकुसुमसंछन्नं, उज्जाणं
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नन्दणोवमं ॥३॥
नानाद्रुमलताकीर्णं, नानापक्षिनिषेवितम् नानाकुसुमसंछन्नम्, उद्यानं
नन्दनोपमम् ॥३॥
पदार्थान्वयः—नाणा-नाना प्रकार के दुमदुम और लया - लताओं से आइन्नं-आकीर्ण नाणा - नाना प्रकार के पक्खि-पक्षियों से निसेवियं - परिसेवित और नाणा—नाना प्रकार के कुसुम - कुसुमों – पुष्पों से संछन्नं-आच्छादित और नन्दणोवमं-नन्दनवन के समान उजाण - वह उद्यान था ।