________________
एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
[ ८५३
पदार्थान्वयः—इड्डी–ऋद्धि च—और वित्तं-धन य-और मित्ते - मित्र पुत्तपुत्र दारं - स्त्री च - पुनः नायओ - ज्ञातिसम्बन्धी जन रेणुअं व धूलि की तरह पडेपट में लग्गं - लगी हुई निदुखित्ता - झाड़कर निग्गओ - घर से निकल गया ।
मूलार्थ - जैसे कपड़े में लगी हुई धूलि को झाड़ दिया जाता है, उसी प्रकार समृद्धि, वित्त, मित्र, पुत्र, स्त्री और सम्बन्धी जनों के मोह को त्याग कर मृगापुत्र घर से निकल पड़े ।
टीका - प्रस्तुत गाथा में बाह्य उपधि के परित्याग का वर्णन किया गया है । माता-पिता की अनुमति मिलने के अनन्तर मृगापुत्र ने राजकीय समृद्धि – हस्ती, अश्वादि का परित्याग कर दिया । रत्नों से भरे हुए कोष को छोड़ दिया। मित्रों से भी वे पराङ्मुख हो गये । पुत्र और स्त्री तथा सम्बन्धी जनों के संग का भी उन्होंने परित्याग कर दिया । वह त्याग भी कैसा ? जैसे कपड़े पर लगी हुई धूल को झाड़कर अलग कर दिया जाता है । यहाँ पर वस्त्र और धूलि के दृष्टान्त से यह भाव व्यक्त किया है कि वस्त्र के साथ लगी हुई रज अप्रिय होने से जैसे झाड़कर वस्त्र से अलग कर दी जाती है, उसी प्रकार इस सांसारिक पदार्थसमूह को भी अत्यन्त अप्रिय समझकर मृगापुत्र ने इनका परित्याग कर दिया और त्याग करने के अनन्तर वे भी वस्त्र की भाँति शुद्ध हो गये ।.
इस प्रकार बाह्य और आभ्यन्तर उपधि का परित्याग करके वे मृगापुत्र किस प्रकार के हो गये, अब इसका वर्णन करते हैं—
पंचमहव्वयजुत्तो, पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य । सब्भिन्तरबाहिरिए, तवोकम्मंमि उज्जुओ ॥८९॥
पंचभिः
समितस्त्रिगुप्तिगुप्तश्च । उद्युक्तः ॥८९॥
तपःकर्मणि
"
पदार्थान्वयः – पंचमहव्त्रय - पाँच महाव्रतों से जुत्तो- युक्त पंचसमिओ-पाँच समितियों से समित य-और तिगुत्तिगुत्तो - तीन गुप्तियों से गुप्त सब्भितरआभ्यन्तर और बाहिरिए - बाह्य तवोकम्मंमि - तपः कर्म में उज्जुओ-उद्यत हो गया ।
पंच महाव्रतयुक्तः साभ्यन्तरबाह्ये
"