________________
-
एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[८४५ पुरुष उसको अन्न-पानी लाकर देता है ? अर्थात् कोई ओषधि नहीं देता, कोई कुशलक्षेम नहीं पूछता, तथा कोई भी अन्न-पानी से उसकी सार-सँभाल नहीं करता । जैसे किसी पुरुष के द्वारा औषधोपचार तथा सेवा-शुश्रूषा के न होने पर भी वह मृग कष्ट को शांतिपूर्वक सहन कर लेता है, उसी प्रकार संयमवृत्ति में आरूढ़ होने वाले मुमुक्षु पुरुष को भी शारीरिक कष्टों को शांतिपूर्वक सहन करके अपने लक्ष्य की
ओर बढ़ते चले जाना चाहिए । कारण कि अशान्ति से रोगों की वृद्धि और शांति से उनकी निवृत्ति होती है।
यहाँ पर 'पणामई' इस प्रयोग में 'अ' धातु को 'पणाम' आदेश किया हुआ है, अतः ‘पणाम' का अर्थ अर्पण करना है।
जया य से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराणि सराणि य ॥१॥ यदा च सः सुखी भवंति, तदा गच्छति गोचरम् । भक्तपानस्यार्थं , वल्लराणि सरांसि च ॥१॥ ____ पदार्थान्वयः-य-च-और जया-जिस समय से-वह सुही-सुखी होइहो जाता है तया-उस समय गोयरं-गोचरी को गच्छइ-जाता है भत्त-भोजन य-और पाणस्स-पानी के अट्ठाए-लिए वल्लराणि-वन य-और सराणि-सर-तालाब—को।
मूलार्थ—तदनन्तर जिस समय वह मृग स्वस्थ हो जाता है, उस समय गोचरी को चल पड़ता है और भोजन तथा जल के लिए हरे हरे घास में और जलाशय में पहुँच जाता है। . टीका-मृगापुत्र कहते हैं कि समय आने पर जब वह मृग नीरोग हो जाता है तब उसी गहन वन में भोजन-भक्ष्य, वनस्पति आदि और जल की तलाश में चल पड़ता है। तथा वन में उपलब्ध होने वाले भोजन और जल से तृप्त होकर स्वेच्छापूर्वक फिर उसी वन में विचरने लगता है। उसी प्रकार संयमवृत्ति को धारण करने वाले मुनि लोग भी अपने जीवन को शांतिपूर्वक व्यतीत करते और कर सकते हैं। यहाँ पर इतना स्मरण अवश्य रहे कि वर्तमान समय में गच्छ में