SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकोनविंशाध्ययनम् मूलार्थ-उष्णता से अति संतप्त होकर असिपत्र महावन को प्राप्त हुआ मैं वहाँ पर असिपत्रों के ऊपर पड़ने से अनेक वार छेदन को प्राप्त हुआ । टीका-मृगापुत्र कहते हैं कि उष्णता के अभिताप से व्याकुल हुआ मैं जब शीत की अभिलाषा से सुन्दर वन की ओर भागा तो असिपत्र नामक महावन को प्राप्त हुआ। उस वन के पत्र खड्ग के समान प्रहार करने वाले थे। अतः उन पत्रों से मैं अनेक वार छेदा गया । अर्थात् उन पत्रों के गिरने से मेरा अंग २ छिद गया। उक्त वन में उत्पन्न होने वाले वृक्षों के पत्र असि-खड्ग के समान तीक्ष्णधार और काटने वाले होने से वह वन असिपत्र वन कहा जाता है । मृगापुत्र के कथन का भावार्थ यही है कि मैंने पूर्वजन्म में स्वोपार्जित कर्म के प्रभाव से इस प्रकार की कठोर नरकयातनाओं को भी अनेक वार भोगा है, जिनके आगे संयम वृत्ति का कष्ट बहुत तुच्छ है। ___ अब फिर इसी विषय का वर्णन करते हैंमुग्गरेहिं भुसुंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहि य। गयासंभग्गगत्तेहिं , पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥६२॥ मुद्गरैर्भुशुंडीभिः , शुलैर्मुशलैश्च । गदासंभग्नगात्रैः , प्राप्तं दुःखमनन्तशः , ॥६२॥ पदार्थान्वयः-मुग्गरेहि-मुद्रों भुसुंढीहिं-भुशुंडियों सूलेहिं-त्रिशूलों यऔर मुसलेहि-मुसलों द्वारा, तथा गयासंभग्गगतेहि-गदा से अंगों को तोड़ने पर पत्तं-प्राप्त किया दुक्ख-दुःख को अणंतसो-अनन्त वार । ____ मूलार्थ-मुद्गरों, भुशुंडिओं, त्रिशूलों, मुसलों और गदाओं से मेरे शरीर के अंगों को तोड़ने से मैंने अनन्त वार दुःख प्राप्त किया। टीका-मृगापुत्र अपने माता-पिता से कहते हैं कि यमपुरुषों ने मुद्गरों से, भुशुंडियों से, त्रिशूलों से तथा मुसलों और गदाओं से मेरा शरीर मार-मारकर नष्ट कर दिया । और इस प्रकार की यातनाओं से मुझे अनन्त वार दुःखी किया। तात्पर्य यह है कि नरकगति में प्राप्त होने वाले जीवों के साथ यमपुरुषों के द्वारा
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy