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एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[८२७ इस प्रकार का कष्टप्रद व्यवहार किया जाता है। वहाँ पर उनका कोई रक्षक नहीं होता; उनको स्वकृत पापकर्म के अनुसार भयंकर से भयंकर यातना भोगनी पड़ती है। उक्त गाथा में आये हुए 'भुशुंडी' शब्द का अर्थ आजकल के विद्वान् 'बन्दूक' करते हैं। तथा ‘गयासंभग्गगत्तेहिं' वाक्य में यदि 'गयासं' पृथक् कर लेवें तो उसका अर्थ 'गताशं–निराश—आशा से रहित' करना चाहिए । ____ अब फिर कहते हैंखुरेहिं तिक्खधारेहि, छुरियाहिं कप्पणीहि य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो, उकित्तो अ अणेगसो ॥६३॥ क्षुरैः तीक्ष्णधारैः, क्षुरिकाभिः कल्पनीभिश्च । कल्पितः पाटितश्छिन्नः, उत्कृतश्चानेकशः ॥६॥ - पदार्थान्वयः–तिक्खधारेहि-तीक्ष्ण धार वाले खुरेहि-क्षुरों से छुरियाहिंछुरियों से य-और कप्पणीहि कैंचियों से कप्पिओ-काटा गया-कतरा गया फालिओ-फाड़ा गया छिन्नो-छेदन किया गया अ-और उकित्तो-उत्कर्तन किया गया-चमड़ी उतार दी गई अणेगसो-अनेक वार । .... मूलार्थ तीक्ष्ण धार वाले क्षुरों-उस्तरों, छुरियों और कतरनियोंकैंचियों से मुझे काटा गया, फाड़ा गया, छिन्न-भिन्न किया गया और चमड़ी को उधेड़ा गया; वह भी एक वार नहीं किन्तु अनेक वार ।
टीका-मृगापुत्र यमपुरुषों द्वारा दिये जाने वाले भयंकर कष्टों का फिर वर्णन करते हुए कहते हैं कि यमपुरुषों ने. मुझे तीक्ष्ण धार वाले उस्तरों से काटा, छुरियों से फाड़ा और कतरनियों से छिन्न-भिन्न किया। इसके अतिरिक्त मेरे शरीर की त्वचा-चमड़ी को भी उधेड़ दिया। और इस प्रकार का दुर्व्यवहार मेरे साथ अनेक वार किया गया । तथा 'उक्वित्तो' का 'उत्क्रान्तः' प्रतिरूप करने से उसका अर्थ 'आयु को क्षय किया' यह होता है। . अब फिर कहते हैं