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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[एकोनविंशाध्ययनम्
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विलुत्तो-विलुप्त किया विलवंतो-विलाप करते हुए मुझे ढंक-ढंक और गिद्धेहिंगृद्धों ने अणंतसो-अनन्त वार ।
मूलार्थ-विलाप करते हुए मुझको बलात्कार से, संडासतुंड वाले और लोहतुण्ड-मुख-वाले पक्षियों ने तथा ढंक और गीध पक्षियों ने अनन्त वार विलुप्त किया।
टीका-इस गाथा में भयंकर पक्षियों द्वारा नरक में दी जाने वाली घोर वेदना का वर्णन किया है। मृगापुत्र ने कहा कि मुझको ऐसे पक्षियों के द्वारा भी पीडित कराया गया कि जिनके मुख संडासी के समान जकड़ने वाले तथा लोहे के समान अत्यन्त कठिन थे। इस प्रकार के ढंक और गृद्ध-गीध आदि पक्षियों ने अपनी तीक्ष्ण चोंचों से मेरे शरीर को बड़ी निर्दयता से विदारण किया। मेरे विलाप करने पर भी उनको दया नहीं आई । यद्यपि नरकों में ऐहिक पक्षियों का अभाव है परन्तु वहाँ पर जिन भयंकर पक्षियों का उल्लेख किया है, वे सब वैक्रिय से उत्पन्न होने वाले हैं। तथा प्रस्तुत गाथा से यह भी ध्वनित होता है कि जो पुरुष निर्दयतापूर्वक दीन, अनाथ पक्षियों का वध करते हैं, परलोक में वे पक्षिगण भी उनकी इसी प्रकार से खबर लेते हैं।
___ अब नरकगति में उत्पन्न होने वाले तीव्र पिपासाजन्य कष्ट का वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कितण्हाकिलंतो धावतो, पत्तो वेयरणिं नइं। जलं पाहिति चिंतंतो, खुरधाराहिं विवाइओ॥६०॥ तृष्णाक्लान्तो धावन् , प्राप्तो वैतरणी नदीम् । जलं पास्यामीति चिन्तयन् , क्षुरधाराभिर्व्यापादितः ॥६॥
पदार्थान्वयः-तण्हा-पिपासा से किलंतो-कान्त होकर धावतो-भागता हुआ पत्तो-प्राप्त हुआ वेयरणिं-वैतरणी नई-नदी को जलं-जल को पाहिति-पीऊँगा, इस प्रकार चिंतंतो-चिन्तन करता हुआ खुरधाराहि-क्षुरधाराओं से विवाइओव्यापादित हुआ-विनाश को प्राप्त हुआ।