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चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं, __ निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहिं चेव,
कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ॥११॥ पुरोहितं तं क्रमशोऽनुनयन्तं, . निमन्त्रयन्तं च सुतौ धनेन । यथाक्रमं कामगुणैश्चैव, . कुमारको तौ प्रसमीक्ष्य वाक्यम् ॥११॥
पदार्थान्वयः-सोयग्गिणा-शोकाग्नि से तथा आयगुणिधणेणं-आत्मगुणेन्धन से मोहाणिला-मोह रूप. वायु से पज्जलणाहिएणं-अति प्रचंड से संतत्तभाव-सन्तप्त भाव परितप्पमाणं-सर्व प्रकार से सन्तप्त हृदय लालप्पमाणंबार २ विलाप करता हुआ बहुहा-बहुत प्रकार से च-और बहुं-अतीव । तं-उस पुरोहियं-पुरोहित को जो कमसोऽणुणतं-क्रम से अनुनय करता हुआ च-और निमंतयं-निमंत्रण करता हुआ सुए-पुत्रों को धणेणंधन से जहक्कम-यथाक्रम कामगुणेहिं-कामगुणों से निमंत्रण करता हुआ ते-वे दोनों कुमारगा-कुमार पसमिक्ख-देखकर-विचार कर वकं-वाक्य-वचन बोले ।
मूलार्थ-शोक रूप अग्नि, आत्मगुण रूप इन्धन और अति प्रचंड मोह रूप वायु से सन्ताप और परिताप को प्राप्त हुए तथा बहुत प्रकार से बहुत सा आलाप-संलाप करते हुए, उस पुरोहित को देखकर वे दोनों कुमार उसके प्रति इस प्रकार बोले, जो कि उन कुमारों को, धन और विषय भोगों से निमंत्रण करता हुआ उनका अनुनय कर रहा था अर्थात् उनके प्रति अपना अभिप्राय प्रकट कर रहा था (युग्मव्याख्या)।
टीका-इस गाथा में उपमालंकार दिखाया गया है । और ११वीं गाथा के साथ मिलकर इसका अर्थ होता है । भृगु पुरोहित शोकरूप अनि