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एकोनविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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की बातों की स्मृति हो जाती है। वृद्ध आम्नाय में कहते हैं कि — इस ज्ञाम वाला अपने लाख संज्ञी जन्मों को देख सकता है । इसमें इतना और समझ लेना चाहिए कि जो जन्म गर्भज हैं उन्हें तो वह देखेगा परन्तु जो संमूच्छिम हैं उनको नहीं देख सकता । हाँ, संमूच्छिम को छोड़कर वह संज्ञी के जन्मों को देखता चला जायगा । बहुत से जीवों को यह ज्ञान उत्पन्न हो जाता है, इसका कारण प्रत्यभिज्ञान ही है । बृहद्वृत्तिकार ने इस गाथा को प्रक्षिप्त माना है ।
जातिस्मरण ज्ञान के उत्पन्न होने पर मृगापुत्र ने अपने ज्ञान में क्या देखा ? अब इसका वर्णन करते हैं
जाईसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते सरइ पोराणियं जाई, सामण्णं च जातिस्मरणे समुत्पन्ने, मृगापुत्रो
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स्मरति पौराणिक जातिं श्रामण्यं च पुराकृतम् ॥९॥ पदार्थान्वयः———जाईसरणे – जातिस्मरण के सम्मुप्पन्ने - उत्पन्न हो जाने पर मियापुत्ते- -मृगापुत्र महिड्डिए - महान् समृद्धि वाला सरइ-स्मरण करता है पोराणियंपूर्व जाई - जाति को च- और सामरणं - श्रमण भाव को, जो पुराकयं - पुराकृत है ।
महिडिए । पुराकयं ॥ ९ ॥ महर्द्धिकः ।
मूलार्थ – महत समृद्धि वाला वह मृगापुत्र, जातिस्सरण ज्ञान के उत्पन्न होने पर पूर्व की जाति और पूर्वकृत संयम का स्मरण करता है ।
टीका - जातिस्मरण ज्ञान होने पर मृगापुत्र को अपने पूर्वजन्म के कृत्यों का स्मरण होने लगा । क्योंकि इस ज्ञान वाला पुरुष अपने ज्ञान में जिस समय अपने पूर्वजन्म को देखता है, उस समय उसको उस जन्म के सभी कृत्यों का भान होने लगता है। इसलिए मृगापुत्र ने जिस समय मुनि के रूप को देखा और उसके देखने से उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, उसी समय पर उसको अपने पूर्वजन्म के ज्ञान के साथ ही ग्रहण किये हुए मुनिवेष का भी भान हो गया । अतः पूर्वजन्म की स्मृति के साथ ही उसको अपने श्रमण भाव का भी ज्ञान हो गया, जिसको कि उसने पूर्वजन्म में स्वीकार किया था ।