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उत्तराध्ययनसूत्रम्
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[ चतुर्दशाध्ययनम् हम आप से आज्ञा चाहते हैं । तात्पर्य कि आप हमें धर्म में दीक्षित होने की अनुमति प्रदान करें।
__ यहां पर 'लभामो-आमंतयामो-चरिस्सामु' ये सब बहुवचन द्विवचन के स्थान पर प्रयुक्त हुए जानने । क्योंकि प्राकृत में द्विवचन नहीं होता । अतएव 'तथा चास्मदोऽविशेषणे' इस सूत्र से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता है।
पुत्रों के इस वचन को सुनकर भृगु पुरोहित कहने लगेअह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, . .
तवस्स वाघायकरं वयासी। . इमं वयं वेयविओ वयन्ति,
जहा न होई असुयाण लोगो ॥८॥ अथ तातकस्तत्र मुन्योस्तयोः,
.. तपसो व्याघातकरमवादीत् । इमां वाचं वेदविदो वदन्ति,
यथा न भवत्यसुतानां लोकः ॥८॥ पदार्थान्वयः-अह-अथ तायगो-पिता तत्थ-उस समय तेसिं-उन मुणीण-मुनियों को तवस्स-तप के वाघायकरं-व्याघात करने वाला वचन वयासीबोला इमं यह वयं-वाणी वेयविओ-वेदवित् वयंति-कहते हैं जहा-जैसे असुयाण-पुत्ररहितों को लोगो-लोक वा परलोक न होई-नहीं होता।
मूलार्थ-उस समय पिता ने उन भाव मुनियों के तप को व्याघात करने वाला यह वचन कहा कि पुत्ररहितों को लोक वा परलोक की प्राप्ति नहीं होती, ऐसे वेदवित् कहते हैं।
टीका-जब उन कुमारों ने पिता के पास आकर अपने मनोगत भाव प्रकट किये तब पिता ने उनके तप और संयम में विनरूप इस प्रकार का वचन